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लॉकडाउन में ढील के बाद ट्रेफिक लाइट वेंडर्स की जिंदगी, कुछ इस तरह बदल गई

भीषण गर्मी के बीच गुड़गांव के फुटपाथ पर शीला देवी अपने दो बच्चों के साथ ट्रेफिक लाइट रेड होने का इंतजार करती है और जैसे ही लाइट रेड होती है, वह कार विंडो स्क्रीन और साफ करने वाले कपड़े बेचने के लिए रेड लाइट पर खड़ी कारों के नजदीक जाती है। लेकिन अब कोरोना वायरस के संक्रमण के डर से कोई भी कार ग्लास खोलकर उससे सामान खरीदने को तैयार नहीं है।

उदास होकर शीला वापस फुटपाथ पर अपने बच्चों के पास आ जाती है और अगली बार ट्रैफिक लाइट रेड होने का इंतजान करने लगती है। शीला देवी की तरह तमाम ट्रेफिक लाइट वेंडर कोविड-19 के कारण लगाए गए लॉकडाउन में राहत दिए जाने और ट्रेफिक दोबारा शुरू होने पर खुश थे और उन्हें उम्मीद थी कि उनकी बिक्री दोबारा शुरू होगी तो उनके कष्ट कुछ कम होंगे।

पिछले दो महीने से परेशान इन वेंडर्स के पास बिना बिका स्टॉक भी बच गया था। ट्रेफिक शुरू होने पर वे दोबारा ट्रेफिक सिग्नल पर लौट आए ताकि वे अपनी आजीविका चला सके लेकिन अभी उनकी बिक्री बहुत कम है। उन्हें नहीं पता कि कब तक यह स्थिति बनी रहेगी।

शीला देवी बताती है कि हम पिछले सात साल से इसी तरह अपनी आजीविका चला रहे थे। उनका पति दूसरे ट्रेफिक सिग्नल पर इसी तरह सामान बेचने जाता है। उसने ट्रेफिक लाइट पर सामान बेचना उस समय भी बंद नहीं किया था, जब वह गर्भवती थी। लेकिन लॉकडाउन लागू होने के बाद उसे रोकना पड़ा। अब सड़कों पर ट्रेफिक तो दोबारा शुरू हो गया है। वह मास्क से अपना चेहरा ढंककर रहती है, फिर भी लोग खरीद तो दूर ग्लास खोलकर सामाम देखने से भी इन्कार कर देते हैं। वह बताती है कि उसे दिन में बच्चे अपने साथ रखने होते हैं क्योंकि उसका पति उनकी देखभाल नहीं कर पाता है। यहीं नहीं, उसे माल खरीदने और दूसरे काम भी करने पड़ते हैं।

ट्रेफिक लाइट से तय होती है उनकी आजीविका

वर्षों से शीला तरह सैकड़ों ट्रेफिक लाइट वेंडर की आजीविका के अनुसार तय होती है। उनके लिए रेड लाइट का मतलब बिक्री से होता है। पीली लाइट होने पर उन्हें तैयार होता है और रेड लाइट होने पर कार के पास पहुंचना होता है। हरी लाइट सहोने से उन्हें दूसरी तरफ जाने का संकेत मिलता है। ये वेंडर महज कुछ पल में लाइट ग्रीन होने से पहले मोलभाव भी कर लेते हैं।

36 वर्षीय त्रिभुवन कुमार का कहना है कि कुछ समय तक उनकी बिक्री पहले जैसी नहीं रहेगी। अब लोग वायरस से डर रहे हैं। सीजन के अनुसार लाइट पर बिकने वाला सामान बदल जाता है। वे डस्टर, वाइपर, टिश्यू पेपर, बेटरी चार्जर, बुक्स, स्टीयरिंग कवर, विंडो स्क्रीन से लेकर फूल, मैगजीन और खिलौने तक तमाम चीजें बेचते हैं। ट्रेफिक लाइट ग्रीन होने से पहले कुछ मिनट या कुछ सेकंड में वह ग्राहक को तैयार कर लेते हैं। लेकिन अब वैसी स्थति नहीं रह गई है।

मालती जब ट्रेफिक सिग्नल पर सामान बेचती है, तब उसके बच्चे नजदीक के कम्युनिटी किचन में खाना लेने चले जाते हैं। वह बताती है कि उसने पिछले दो महीने जैसे-तैसे गुजारा कर लिया। लेकिन अब गुजारे के लिए कुछ बिक्री जरूरी है। वह बताती है कि अगर वह मास्क से मुंह नहीं ढंकती है तो पुलिस वाले रोकते हैं। वैसे आमतौर पर वे ज्यादा रोका-टाकी नहीं करते हैं।

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