देश

भारत को धर्मनिरपेक्षता की जरूरत नहीं – गोविंदाचार्य

नई दिल्ली । भारत में 1990 के दशक में जब ‘कार सेवा’ और ‘रथ यात्रा’ जोरो पर था, वह संघ परिवार को प्रतिष्ठित विचारक और भाजपा के पूर्व महासचिव गोविंदाचार्य ही थे जो भाजपा की राम मंदिर रणनीति के केंद्र में थे।

दशकों बाद, हालांकि उन्होंने भगवा पार्टी के साथ नाता तोड़ लिया है, वह अभी भी 5 अगस्त को अयोध्या में राम मंदिर के लिए ‘भूमि पूजन’ के दिन उमड़ने वाली भावनाओं को महसूस करते हैं।

के. एन. गोविंदाचार्य का कहना है कि भारत को धर्मनिरपेक्षता जैसी ‘पश्चिमी ‘ अवधारणाओं की आवश्यकता नहीं है।

भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी के साथ, राम जन्मभूमि आंदोलन को आकार देने वाली कोर टीम का हिस्सा रहे गोविंदाचार्य ने आईएएनएस को साक्षात्कार दिया।

उनसे जब पूछा गया कि आप राम जन्मभूमि आंदोलन के केंद्र में रहे हैं। अब जब राम मंदिर ‘भूमि पूजन’ शुरू होने में कुछ ही दिन रह गए हैं और जब आप पीछे मुड़कर देखते हैं, तो कैसा लगता है?

इस पर गोविंदाचार्य ने आईएएनएस से कहा, “यह 500 वर्षों का संघर्ष है। यह 500 वर्षों के संघर्ष के बाद हिंदू सभ्यता का दावा है जिसकी सुखद परिणति हम इस ‘भूमि पूजन’ के माध्यम से देखेंगे। यह सभ्यतागत पहलू बहुत अहम है क्योंकि लगभग 500 साल पहले उपनिवेशवाद या प्रोटेस्टेंटवाद शुरू हुआ था। इसके कारण हम खून में सने एक यूरोप केंद्रित समृद्धि के साक्षी बने हैं। तो इसलिए, यह ‘भूमि पूजन’ हमारे अपने सभ्यता की प्रगति में एक महत्वपूर्ण तारीख है।”

यह पूछे जाने पर कि ‘रामराज्य’ क्या है? 1990 के दशक के दौरान इस शब्द का प्रयोग बार-बार किया गया था। आज इसका क्या महत्व है? तो गोविंदाचार्य ने कहा, “पश्चिम में एक मानव विकास संबंधी अवधारणा है, जिसने दो विश्व युद्ध और असमानता पैदा की। जहां 500 साल का और आगे का हमारा प्रयास रामराज्य के लिए है। यह गांधीजी के हिंद स्वराज के अलावा और कुछ नहीं है, जो पारिस्थितिकी विकास है। यह आत्मनिर्भर होने की अवधारणा है, समानता आधारित समृद्धि जो महंगाई पर नहीं बल्कि संतोष पर आधारित है। रामराज्य में उत्पादों के लिए मूल्य नहीं होगा, लेकिन उस उत्पाद को बनाने के लिए कौशल की सराहना की जाएगी। यह विचार पश्चिमी स्कूल से बहुत अलग है।”

‘हिंदुत्व’ शब्द का इस्तेमाल आजकल खूब हो रहा है, क्या आपको लगता है कि देश के मानस में कोई बदलाव हुआ है? इस पर उन्होंने कहा, ” इतने लंबे समय के बाद, हिंदुत्व को प्रमुख स्थान मिल रहा है। स्वाभाविक रूप से, इसे स्वीकार किया जा रहा है। जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला (राम मंदिर पर) आया, तो पूरे देश ने इसे खुले दिल से स्वीकार किया। अधिकांश ने इसे स्वीकार कर लिया।”

गोविंदाचार्य से जब पूछा गया कि आप अक्सर धर्मनिरपेक्षता के बारे में बात करते हैं। लेकिन वर्तमान संदर्भ में कई लोग यह आरोप लगाते हैं कि इस विचार को अभिकथनों और भाजपा के सत्ता में आने के साथ बदल दिया गया है।

क्या आप इसस सहमत हैं तो उन्होंने कहा, ” भारत के लिए धर्मनिरपेक्षता की आवश्यकता नहीं है। भारत की उपासना की सभी पद्धतियों के प्रति सम्मान की अपनी अवधारणा है। इसके बजाय, धर्मनिरपेक्षता का विचार पश्चिम से उधार लिया गया है। पश्चिम का अपना सामाजिक और राजनीतिक संघर्ष था जिसके बीच धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा को लाया गया था। इसका भारत के इतिहास या भूगोल से कोई लेना-देना नहीं है।”

उन्होंने यह पूछने पर कि एक सदी से चले आ रहे विवाद के बाद इस कानूनी जीत का श्रेय किसे देते हैं, कहा कि यह सभ्यता का दावा है जो आज जीता है जिसमें लाखों ‘स्वयंसेवकों’ और ‘कार सेवकों’ ने अशोक सिंघल के नेतृत्व में आंदोलन के दौरान अपना जीवन दांव पर लगा दिया। यह किसी एक वर्ग, संगठन या 1 या 10 नेताओं की नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र की सामूहिक जीत है।

राम मंदिर तीर्थक्षेत्र के लिए कोई भी सुझाव के बारे में उन्होंने कहा कि इस बात का बहुत ध्यान रखा जाना चाहिए कि यह लोगों के हाथों में रहे और यह सरकारी विभाग न बने।

गोविंदाचार्य से जब पूछा गया कि असदुद्दीन ओवैसी या शरद पवार जैसे कुछ विपक्षी नेताओं ने इसमें राजनीतिक रंग जोड़ा है। आप कैसे प्रतिक्रिया देते हैं? तो उन्होंने कहा कि यह एक राष्ट्र के प्रति एक अनुचित राय है। वे अपनी राजनीतिक लड़ाई दूसरे मुद्दों पर लड़ सकते हैं। लेकिन इस मुद्दे पर, पूर्ण राष्ट्रीय सहमति होनी चाहिए। कोई भी विवाद मददगार नहीं होगा।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Close
Close