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मदन दास देवी : संघ ऋषि की अनन्‍त यात्रा और याद आती उनकी चेतावनी – डॉ. मयंक चतुर्वेदी

भारत माता की दिन-रात आराधना करने में लगे करोड़ों स्‍वयंसेवक हैं जो आज बहुत व्‍यथित हैं, उन्‍होंने अपने एक मार्गदर्शक को खोया है। जो स्‍वयंसेवक राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ प्रचारक और पूर्व सह सरकार्यवाह मदन दास देवीजी के संपर्क में रहे, वे जानते हैं कि कैसे उन्‍हें वैचारिक रूप से तैयार करने का काम उन्‍होंने किया। इनमें बहुत से स्‍वयंसेवक ऐसे भी हैं जिनका कि पहली बार ‘ध्‍वज प्रणाम’ भी मदनदासजी के कारण हो सका है ।

भारत यानी क्‍या, त्‍याग मय जीवन क्‍यों जीयें, स्‍वदेशी आग्रह नहीं, जरूरत, हिन्‍दू जीवन का आर्थ‍िक चिंतन और उसे राष्‍ट्रजीवन में प्रभावी बनाने की आवश्‍यकता क्‍यों? जैसे अनेक प्रश्‍न तत्‍कालीन समय से लेकर आज उनके देवलोक गमन तक ऐसे हैं जिनके उत्‍तर मदनदास देवीजी ने अपने जीवन में विभिन्‍न संगठन दायित्‍वों पर रहते हुए देने का प्रयास किया और आज भी ये प्रश्‍न, उनके दिए गए उत्‍तर समृद्ध और शक्‍तिशाली भारत के लिए सही प्रतीत होते हैं।

वस्‍तुत: देश जब स्‍वाधीनता का अमृत महोत्‍सव बना रहा है, तब एक चिंतन धारा और उसका विमर्श प्रभावी रूप से चर्चा में आया, वह है ”स्‍व” । यह ‘स्‍व’ क्‍या है? इस ‘स्‍व’ से भारत स्‍वाधीनता की यात्रा ही नहीं करता है, बल्‍कि प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति का ‘स्‍व’ मिलकर जब एक बड़ा ‘स्‍व’ बनाता है , तब आगे यह ‘स्‍व’ ही तय करता है कि आपका आनेवाला भविष्‍य कैसा होगा। जब-जब व्‍यक्‍ति और समाज के स्‍तर पर यह ‘स्‍व’ जितना महान, उदात्‍त और सकारात्‍मक दिशा में महत्‍वाकांक्षी होता दिखा, तब-तब यह राष्‍ट्र के भवितव्‍य को निर्धारित करता हुआ दिखता है । आप पाएंगे कि विद्यार्थियों में इसी ‘स्‍व’ को मदनदास देवीजी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के माध्‍यम से जागृत करते हुए 1964 से सतत 22 वर्षों तक दिखाई देते हैं।

देश की राजधानी दिल्‍ली में एक सितम्बर 2021 के दिन केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ”संगठन कौशल” नामक पुस्तक विमोचन पर यूं ही नहीं बोल रहे थे कि कैसे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में कार्य करने के दौरान उनके जीवन में बड़ा और व्यापक परिवर्तन आया। उनके जैसा सामान्य व्यक्ति आज जो कुछ भी है, वह संगठन में मिले अनुभवों की वजह से है। इस आयोजन में स्‍वयं मदनदास देवीजी थे और केंद्रीय मंत्री गडकरी कह रहे थे; उन्हें अभाविप में देवीजी और यशवंतरावजी से ही जीवन जीने के तरीके और प्रबंधन की तमाम शिक्षाएं मिलीं, जिसे आज वह हार्वर्ड से लेकर अन्य तमाम संस्थाओं के कार्यक्रमों में बताते हैं।

गडकरी अकेले नहीं हैं, अरुण जेटली, वेंकैया नायडू, रविशंकर प्रसाद, जेपी नड्डा, धर्मेंद्र प्रधान, जैसे कई नाम जिन्‍हें आज राजनीति‍ के क्षेत्र में जाना जाता है, ऐसे अनेक विविध क्षेत्रों में कार्यकरनेवाले कार्यकर्ता मदनदास देवीजी के मार्गदर्शन में ही राष्‍ट्र जीवन की दिशा को जाने हैं। वे विद्यार्थी परिषद् को नवीन स्वरूप, आकार, उसकी रचना में विस्तार और व्यापकता के शिल्पकार तो हैं हीं, किंतु देवीजी के जीवन की यह विशेष खूबी रही कि संघ ने उन्‍हें जहां भेजा, वह वहां गए और कार्य में जुट गए । विश्व विभाग के वे अनेक वर्षों तक पालक अधिकारी रहते हुए 180 देशों में हिन्दू संगठन का कार्य विस्‍तार करते दिखते हैं। उन्‍हें जब राजनीतिक क्षेत्र के अटल बिहारी की सरकार मे संपर्क समन्‍वय का छह वर्ष तक दायित्व निभाने का अवसर मिला, तब उनके अनेक सुझाव भारत को शक्‍ति सम्‍पन्‍न बनाने का कारण बने।

इस सब के बीच जो उनका विशेष‍ चिंतन और प्रत्‍येक भारतीय के लिए यह एक चेतावनी भी है, आज हमें उसे गंभीरता से लेने की आवश्‍यकता है । छह सितम्‍बर 2009 के दिन राजस्‍थान के हरिश्‍चंद्र माथुर लोकप्रशासन संस्‍थान, जयपुर में जो उन्‍होंने कहा, वह संकेत भारत को हर स्‍थ‍िति में ताकतवर बनानेवाला है। भारत की आर्थिक स्‍थ‍िति और विश्‍व के ताकतवर देशों की आर्थि‍की की आपसी तुलना करते हुए उन्‍होंने साफ शब्‍दों में कहा था कि विश्व व्यापार संगठन, विश्‍वबैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक कोष के प्रभाव से भारत जितना दूर रहेगा, भविष्‍य का भारत उतना शक्‍ति सम्‍पन्‍न होगा। इसके लिए उन्‍होंने स्‍वदेशी का रास्‍ता सुझाया । देवीजी ने कहा ; अपनी स्‍वदेशी कंपनियों को ताकतवर करो, नहीं तो आनेवाले कल में बड़ा संकट भुगतना होगा । स्‍वदेशी आन्‍दोलन सिर्फ बातों तक सीमित नहीं रहे, प्रत्‍येक भारतीय की जीवन निष्‍ठा उसके प्रति हो । भारत के लोग स्‍वदेशी कंपनियों की वस्‍तुओं का जितना अधिक प्रयोग करेंगे, देश उतना ही ताकतवर बनेगा।

उन्‍होंने चेताया भी कि डॉलर की कीमत बनाए रखने और सब प्रकार के अधिकार प्राप्‍त करने के लिए शक्‍तिशाली देश अपनी कूटनीति करते रहेंगे। उनके लिए इस प्रकार की ठगी करना उनके डॉलर की कीमत बनाए रखने और अन्‍य देशों को उसके भण्‍डारण के लिए विवश करके लिए उनकी दृष्टि से आवश्‍यक भले ही हो, किंतु अपने ”स्‍व” को जागृत करते हुए स्‍वदेशी को जीवन में धारण करने से कोई भी ताकत किसी भी भारतीय को नहीं रोक सकती है। ऐसे में भारत को आर्थ‍िक रूप से शक्‍ति सम्‍पन्‍न बनाने का एक मात्र विकल्‍प भारत के सामने यदि कुछ है तो वह स्‍वदेशी जीवन को घर-घर अपनाने में ही है ।

अंत में यही कि 19 अक्‍टूबर 2016 में उन्‍होंने जो कहा, आज सच साबित हो रहा है। ”नेता का दृष्टिकोण तब व्यापक हो सकता है जब नेता को निर्णय लेने की पूरी स्वतंत्रता दी जाए। (नरेंद्र मोदी) सरकार ऐसे फैसले ले रही है जो अच्छे साबित हो रहे हैं ” । आज स्‍वयं प्रधानमंत्री मोदी ने उन्‍हें अपनी दी गई श्रद्धांजलि में कहा भी ”श्री मदन दास देवी जी के देहावसान से अत्यंत दुख हुआ है। उन्होंने अपना पूरा जीवन राष्ट्रसेवा में समर्पित कर दिया। उनसे मेरा न सिर्फ घनिष्ठ जुड़ाव रहा, बल्कि हमेशा बहुत कुछ सीखने को मिला। शोक की इस घड़ी में ईश्वर सभी कार्यकर्ताओं और उनके परिवारजनों को संबल प्रदान करे। ओम शांति!”

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