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चहुंओर स्वीकार्यता के साथ समाज के गौरव में ही संघ का गौरव है : RSS सरकार्यवाह अरुण कुमार

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“संघ के सौ वर्ष पूरे हो रहे हैं, देश में 70 -75 हजार स्थानों पर संघ का काम चल रहा है यह संघ के लिए गौरव का विषय नहीं है. समाज के गौरव में संघ का गौरव है. जिस विचार को लेकर हम चले उसकी सब और स्वीकार्यता हमारे लिए संतोष का विषय है.” उक्त आशय के विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री अरुण कुमार ने वैटनरी कॉलेज के मैदान में आयोजित विजयादशमी कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए. भगवान वाल्मीकि जयंती की शुभकामनाएं देते हुए उन्होंने कहा संघ का उत्सव, जिन गुणों को हम अपने अंदर विकसित करना चाहते हैं, उनके आत्मचिंतन का अवसर होता है. विजयादशमी हिंदू संस्कृति के मूल्यों की विजय का पर्व है.
हजार वर्षों के संघर्ष के बाद 15 अगस्त सन 47 में हमारी स्वाधीनता से स्वतंत्रता की ओर यात्रा प्रारंभ हुई। स्व के बिना स्वतंत्रता कैसे हो सकती है. स्व याने अपनी भाषा, अपनी संस्कृति, स्वावलंबन ,अपने गाँव -अपना देश. महान वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बासु चाहते थे भारत की सभी भाषाओं में विज्ञान की पढ़ाई प्रारंभ हो. उन्होंने अपने सारी संपत्ति इस काम में लगा दी थी.
उन्होंने कहा नया भारत उभर रहा है. उद्यमिता उभर रही है. हमें आगे क्या करना है यह बहुत महत्वपूर्ण है. कोरोना काल में हमारे समाज ने एकजुटता दिखाई. भविष्य में भी हमें सारे समाज को साथ लेकर अपने पास-पड़ोस, अपने गाँव अपने नगरों के समाज का भारतीय मूल्य आधारित विकास करना है. समाज के हर क्षेत्र में हर वर्ग , हर जाति के व्यक्तियों को आगे लाना है. महिलाओं की भी सब ओर भागीदारी होनी चाहिए.
इसके पहले स्वयंसेवकों ने अनेक शारीरिक प्रदर्शन के कार्यक्रम किए, जिनमें समता, दंड, यष्टि (छोटा दंड या बेंत ), नियुद्ध (मार्शल आर्ट), घोष (बैंड) आदि शामिल थे. मंच पर प्रांत संघचालक डॉ प्रदीप दुबे और विभाग संघचालक डॉ कैलाश गुप्ता भी उपस्थित थे. कार्यक्रम में गणवेशधारी स्वयंसेवकों के अतिरिक्त प्रांत , विभाग, जिले के संघ कार्यकर्ता, संत , सामाजिक क्षेत्रों की अनेक महिलाएँ तथा नागरिक शामिल थे. कार्यक्रम का आरंभ भगवा ध्वज के अवतरण व प्रार्थना से हुआ. कार्यक्रम के समापन के पश्चात स्वयंसेवकों का पथ संचलन निकला जो भारत माता चौक, शिवाजी मैदान, टैगोर उद्यान, समन्वय चौक, एम्पायर टॉकीज होता हुआ पशु चिकित्सा विद्यालय वापस लौटा. तेज धूप के बावजूद सभी स्वयंसेवक और श्रोता लगभग ढाई घंटे अनुशासित बैठे रहे. प्रेरक गीतों और सुन्दर घोष ध्वनि ने श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध किया.

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