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कोटपा संसोधन को लेकर बीड़ी ठेकेदारों ने विधायक और सांसद को सौंपा ज्ञापन

सिहोरा/ जबलपुर में बनने वाली बीड़ी किसी दौर में पूरी देश में पहचान रखती थी, यह लगभग दो सौ साल पुराना कारोबार है, मगर धीरे-धीरे यह उद्योग सरकारी रोक-टोक के चलते कमजोर होता गया. उसी के चलते इस कारोबार ने पश्चिम बंगाल और दक्षिण भारत में अपनी गहरी पैठ बना ली. महाकौशल इलाके के बड़े हिस्से में रोजगार का साधन बीड़ी निर्माण रहा है, मगर अब इस कारोबार पर संकट के बादल गहराने लगे हैं, ऐसा इसलिए क्योंकि सिगरेट एंड अंडर टोबेको प्रोडक्ट एक्ट (कोटपा) 2003 में अभी हाल में संशोधन कर नई नियमावली जारी की है. यह संशोधन फरवरी 2021 से लागू होने वाले हैं और इससे बीड़ी कारोबार से जुड़े लोगों में चिंता बढ़ी हुई है।।
जबलपुर क्षेत्र में बीड़ी ग्रामीण कुटीर उद्योग के तौर पर लोगों की आर्थिक समृद्धि और रोजगार का बड़ा कारण रहा है. इस कारोबार से यहां के लगभग आठ लाख लोग जुड़े हुए हैं, इतना ही नहीं आदिवासी वर्ग तेंदूपत्ता संग्रह करके अपने परिवार का जीवन यापन करता है. यह ऐसा उद्योग है, जिसमें न तो पानी की जरूरत होती है और न ही बिजली की. इसके बावजूद इस उद्योग को सिगरेट जैसे उद्योगों के समानांतर मानते हुए मशीन निर्मित उत्पादों के नियम थोपे जा रहे हैं, जिससे इस उद्योग पर गहरा खतरा मंडराने की संभावना है.

कोटपा के जो नए नियम लागू किए जा रहे हैं, उससे बीड़ी कारोबार बंद होने की कगार पर पहुंच जाएगा. नियमों के मुताबिक बीड़ी के कारोबार में मशीन का उपयोग नहीं किया जाता, यह पूरी तरह मानव श्रम आधारित कारोबार है. जो नए संशोधन किए जा रहे हैं उसके जरिए बीड़ी कारोबार को गुटका और सिगरेट के बराबर लाकर खड़ा किया जा रहा है. इसके अलावा पनवाड़ी, बीड़ी विक्रेता को पंजीयन कराना अनिवार्य किया जा रहा है. जो संशोधन किए जा रहे हैं, वह पूरी तरह अव्यवहारिक है, कुटीर उद्योग को बंद करने वाला करार देते कहा है कि इसका दुष्प्रभाव कारोबार पर पड़ेगा. इस संशोधन को करते वक्त इस कारोबार से जुड़े लोगों से संवाद ही नहीं किया. देशभर में 15 करोड़ लोग जुड़े हैं, उनके रोजगार पर कुठाराघात होगा. ऐसा लगता है जैसे कुटीर उद्योग को बंद करके मशीनी उद्योग को सरकार बढ़ावा देना चाह रही है.

सांसद और विधायक को सौंपा ज्ञापन
विधायक नन्दनी मरावी और सांसद राकेश सिंह को बीड़ी ठेकेदारों द्वारा ज्ञापन सौंपा गया जिसमें कहा गया है कि केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा कोपटा कानून 2003 के तहत 31 दिसंबर 2020 को नई नियमावली जारी की है, जिसके संशोधन के लिए केवल 31 जनवरी तक ही सुझाव स्वीकृत होंगे. इस नियमावली के कई नियम बीड़ी उद्योग के लिए नुकसानदायक हैं. विशेष रूप से मध्यप्रदेश बीड़ी उद्योग के लिए. राज्य में बहुत बड़ा वर्ग इस कारोबार से जुड़ा हुआ है, यदि कोपटा की नई नियमावली वर्तमान स्वरूप में लागू हो गई तो बीड़ी उद्योग निश्चित रूप से ध्वस्त हो जाएगा और कई मजदूर रातों-रात बेरोजगार हो जाएंगे. यह बेरोजगारी हमारे प्रदेश के लिए गंभीर समस्या होगी.

इन्होंने की मांग

बीड़ी ठेकेदार विनोद चौबे, जय प्रकाश दुबे, अशोक दुबे, साबिर खान, फैजू खान, रामकिशोर, राजकुमार, अरबिंद भाई जी पटेल, आदि बीड़ी संघ ने मांग की है कि कोपटा की नई नियमावली को लागू करने से पूर्व दो माह की अवधि अर्थात 31 मार्च 2021 तक सुझाव मांगे जाएं. कोपटा में किए गए संशोधन के मुताबिक बीड़ी के बंडल पर 90 प्रतिशत हिस्से में चेतावनी देने के साथ निर्माता को अपना ब्यौरा और निर्माण की तिथि का भी ब्यौरा देना होगा. इस पर निर्माता अपना लेवल नहीं लगा सकेगा, कुल मिलाकर ब्रांडिंग नहीं कर सकेगा. सवाल है कि तो फिर ग्राहक को अपनी पसंद की बीड़ी मिलेगी कैसे.

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