खेती की आय बताने वाले अब आयकर के रेडार पर …

■ सीए अनिल अग्रवाल
खेती को लाभ का धंधा बनाया जाए इसके लिए आजादी के बाद से ही सारे प्रयास शुरू हो गए थे । वैसे भी भारत एक कृषि प्रधान देश है , परंतु अत्याधुनिक तकनीकी से खेति वाकई लाभ का धंधा बनती जा रही है गौरव से होने वाली आय की वित्तीय गणना के लिए शासकीय मापदण्ड में लचीलापन रहा है । हमारे देश में खेती की कमाई वाकई में कितनी होती या नहीं, लेकिन काले धन को सफेद करने में इसका उपयोग बड़े स्तर पर होता है. दूसरा ये कि देश में लगभग 95% किसान छोटे है जिनकी आय सालाना 10 लाख रुपये से कम होती है और मात्र 5% किसान ही बड़े किसान होते हैं जिनकी खेती से आय बड़े स्तर पर होती है और बताई जाती है.अब आयकर विभाग ने संसद की लोक लेखा समिति की रिपोर्ट के आधार पर तय किया है कि खेती की आय बताने वालों को अब विभाग के समक्ष खेती जैसी आयकर मुक्त आय को साबित करने के लिए ज्यादा और ठोस सबूत पेश करने होंगे अन्यथा इस पर टैक्स लगना तय ।
ये सबूत क्या होंगे और किस रूप में विभाग के समक्ष पेश करने होंगे, इस पर मापदंड तय किए जा रहें हैं और हो सकता है कि नए आयकर विवरणी में यह बदलाव जल्द किया जावेगा जिसमें खेती की आय बताने वालों को ग्राम पंचायत और जमीन संबंधित कुछ कागजात भी अपलोड करने होंगे. एक गहन आयकर प्रक्रिया का माडल तैयार किया जा रहा है जो सुनिश्चित करेगा कि खेती की आय बताने वाले सिर्फ जमीन के आधार पर ही आय नहीं बता पाएंगे, अब उन्हें वाकई मे हुई आय के सबूत भी दिखाने होंगे.यह भी तय किया जा रहा है कि 5 लाख रुपये से अधिक की खेती की
आय बताने वालों का केस कम्पल्सरी
जांच के लिए चुना ही जावेगा.आयकर मुक्त आय बताना अब नोटिस आमंत्रित करने जैसा होगा क्योंकि अब सरकार ज्यादा करमुक्त आय वाले करदाता पर टैक्स लगाने की मंशा बना चुकी है. खासकर खेती की आय बताने वालों को अब न केवल सतर्क रहना होगा बल्कि खेती से संबंधित सारे कागजातों को सम्भाल कर भी रखना होगा. संसद में केंद्र सरकार ने ‘कृषि से होने वाली आय पर टैक्स में छूट देने से संबंधित मौजूदा तंत्र में कई खामियों की ओर इशारा किया.लोक लेखा समिति ने संसद में बताया कि लगभग 22.5% मामलों में,अधिकारियों ने दस्तावेजों के उचित मूल्यांकन और सत्यापन के बिना कृषि से अर्जित आय के मामले में कर-मुक्त दावों को मंजूरी दे दी, जिससे टैक्स चोरी की गुंजाइश बनी रही. लोक लेखा समिति ने 5 अप्रैल 2022 को संसद में अपनी रिपोर्ट, ‘कृषि आय से संबंधित आकलन’ जारी किया था, जो देश के महालेखा परीक्षक और नियंत्रक की एक रिपोर्ट पर आधारित है. आयकर अधिनियम, 1961 की धारा10(1) के तहत ‘कृषि से होने वालीआय’ को कर से छूट प्राप्त है. कृषि भूमि के किराए, राजस्व या हस्तांतरण और खेती से होने वाली आय को कानून के तहत कृषि आय के रूप में माना जाता है ।
आयकर विभाग के अनुसार उसके पास अपने सभी अधिकार क्षेत्र में धोखाधडी के सभी मामलों की जांच करने के लिए पर्याप्त जनशक्ति नहीं है एवं देश के अधिकांश किसान गरीब हैं और उन्हें कर में छूट दी जानी चाहिए, लेकिन ऐसा कोई कारण नहीं है कि बड़े और धनी किसानों पर टैक्स न लगाया जाए.
नीति आयोग के एक पेपर के मुताबिक यदि कृषि से होने वाली आय के लिए शीर्ष 5% बड़े किसान परिवारों के साथ-साथ कृषि कंपनियों को भी 30% टैक्स स्लैब के दायरे में लाया जाता है, तो सरकार को 50,000 करोड़ रुपये तक का सालाना राजस्व प्राप्त हो सकता है.
जाहिर है सरकार अब बड़ी आय वाले चाहे वो किसान हो या अन्य करदाता, यदि कोई भी करदाता एक लिमिट से ज्यादा करमुक्त आय बता
रहा हैतो उसेअब आयकर विभाग की
गहन जांच प्रक्रिया से गुजरना होगा खासकर खेती की आय को और ऐसे में करदाता के लिए ज्यादा अच्छा होगा कि रिकॉर्ड या सबूतों के अभाव में वह अपनी आय पर कर भर दें एवं विभाग की जांच प्रक्रिया से दूर रहें ।
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