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जिंदा रहते समाजसेवा हिंदुत्व के लिए कार्य, मरणोपरांत देहदान किया

प्राची अनामिका मिश्रा

सिहोरा/ हमारे देश में महर्षि दधिची हुए हैं, जिन्होंने देवताओं के कल्याण के लिए ना केवल अपना देह त्याग किया था बल्कि इस देह का इस्तेमाल करने की अनुमति भी उन्हें दी थी, मृत्यु के बाद देवताओं ने उनकी अस्थियों से वज्र बनाया और इससे वो असुरों का संहार कर सके. दरअसल मृत्यु के बाद हमारे शरीर के अंगों से बहुत से लोगों का कल्याण हो सकता है, लिहाजा अंगदान अब महादान कहा जाता है। ऐसा ही सिहोरा नगर के विनोद सेठी जी धर्म पत्नि का मंगलवार देर शाम को ह्र्दयगति रुकने से आकस्मिक निधन हो गया जिनकी अंतिम इच्छा देहदान करने की थी जिसके बाद परिजनों एवं दोनो बेटों ने मेडिकल जबलपुर को देहदान किया।

हालांकि हमारे देश में मृत्यु के उपरांत देहदान बहुत कम किया जाता है लेकिन ये समय की जरूरत है। मृत्युपर्यत इंसानी देह अग्नि में जलकर मिट्टी में विलीन हो जाती है। इंसान की शख्सियत मिट जाती है। यही देह अगर चिकित्सा शास्त्र का पाठ पढ़ रहे विद्यार्थियों के शोध कार्यो में प्रयुक्त हो तो हम मरने के बाद भी जिंदा रहेंगे। आर्य समाज के अध्यक्ष प्रो. अरुण महाजन ने कहा कि मानव स्वयं के लिए जीता है, लेकिन दूसरों के काम आने वाला इंसान ही श्रेयस्कर है। ईश्वर प्रदत्त देह तो मिट्टी में मिल जाएगी। शरीर के अंगों का दान कर दूसरों को जीवनदान मिल जाए जो जीवन सार्थक हो जाता है।देहदान कार्य समाज सेवा का सर्वोतम कार्य है। संस्कार के लिए अनेकों वृक्ष कटने पर हमारे मित्र पक्षियों के घरौंदे भी नष्ट हो जाते हैं।
👉रश्मि सेठी जी का परिचय

जबलपुर जिले के सिहोरा भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता श्री विनोद सेठी की धर्मपत्नी सिहोरा के सभी सामाजिक धार्मिक राजनितिक कार्यक्रमों में अग्रणी रहने वाली साथ ही हिंदुत्व और सनातन के लिए बढ़चढ़कर कार्य करने वाली श्रीमती रश्मि सेठी जी का आकस्मिक निधन कल मंगलवार को हो गया था।
स्वर्गीय रश्मि सेठी की अंतिम इच्छा देह दान करने की थी परिवार ने भी रश्मि सेठी जी की इच्छा अनुसार देह दान का निर्णय परिवार ने लिया है देह दर्शन हेतु खितौला निवास में पार्थिव शरीर आज सुबह 10 बजे से 12 बजे तक रखा गया। जिसके बाद देह दान विदाई यात्रा 12 बजे निज निवास से प्रस्थान हुआ। सिहोरा खितौला के कई प्रतिष्ठानों की संचालक होने के बाद भी जमीनी स्तर से लोगों से इनका मिलना जुलना था और इनके देहदान करने से समाज के अन्य लोगों को भी प्रेरणा दे गईं।

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