सिंधिया और उनके समर्थकों को लेकर भाजपा में कोई असंतोष नहीं है : राकेश सिंह
इंदौर. वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के उनके समर्थकों के साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आने के बाद पिछले तीन महीनों के दौरान मध्यप्रदेश में कई सियासी समीकरण बदल गये हैं। हालांकि, 24 विधानसभा सीटों पर आगामी उपचुनावों से पहले भाजपा की राज्य इकाई के पूर्व अध्यक्ष राकेश सिंह का दावा है कि इस बड़े दल-बदल को लेकर पार्टी में कोई असंतोष नहीं है और सिंधिया व उनके समर्थक भाजपा की संस्कृति में सहजता से घुल-मिल गये हैं। सिंह ने यहां शुक्रवार को संवाददाताओं से कहा, “सिंधिया और उनके साथ (कांग्रेस छोड़कर) भाजपा में आये नेताओं को लेकर हमारी पार्टी में कहीं कोई असंतोष या नाराजगी नहीं है।” उन्होंने कहा, “सिंधिया और उनके साथ भाजपा में आये नेताओं ने पार्टी की रीति-नीतियों को आत्मसात कर लिया है। इससे भाजपा के सभी नेता और कार्यकर्ता उनके साथ बहुत सहज महसूस कर रहे हैं।”
लोकसभा में जबलपुर क्षेत्र की नुमाइंदगी करने वाले भाजपा नेता ने एक सवाल पर कहा, “हमेशा से भाजपा की पहली प्राथमिकता कमल का फूल (भाजपा का चुनाव चिन्ह) चिन्ह और पार्टी का ध्वज रहा है। लेकिन भाजपा सिंधिया के सम्मान की सदैव पूरी चिंता करेगी।” सूबे की 24 विधानसभा सीटों पर आगामी उपचुनावों से पहले कांग्रेस की ओर से सिंधिया पर “विश्वासघात” करने के आरोपों के साथ तीखे हमले किये जा रहे हैं। सिंह ने पलटवार करते हुए कहा, “पुरानी कहावत है कि खिसियानी बिल्ली, खंभा नोंचे। कांग्रेस के पास फिजूल के आरोप लगाने के अलावा कोई काम नहीं है।” उन्होंने सोशल मीडिया की इन अटकलों को खारिज किया कि आगामी उपचुनावों में देवास जिले की हाटपिपल्या विधानसभा सीट से टिकट नहीं मिलता देखकर पूर्व मंत्री दीपक जोशी ने भाजपा छोड़ने का मन बना लिया है।
भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ने कहा, “हम अफवाहों को नहीं रोक सकते। लेकिन जोशी ने बृहस्पतिवार तक भाजपा की प्रबंध समिति की सभी बैठकों में शामिल होकर सकारात्मक सुझाव दिये हैं। वह आगामी उपचुनावों में भाजपा के पक्ष में पूरी ताकत से काम करेंगे।” हाटपिपल्या, जोशी की परंपरागत सीट रही है। लेकिन आगामी उपचुनावों में भाजपा उम्मीदवार के तौर पर पार्टी के नये-नवेले नेता मनोज चौधरी का नाम लगभग तय माना जा रहा है। चौधरी, कांग्रेस के उन 22 बागी विधायकों में शामिल हैं जो सिंधिया की सरपरस्ती में विधानसभा से त्यागपत्र देकर भाजपा में शामिल हो गये थे। इस दल-बदल के साथ ही तत्कालीन कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गयी थी। नतीजतन कमलनाथ को 20 मार्च को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। इसके बाद शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा 23 मार्च को सूबे की सत्ता में लौट आयी थी।