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हाईकोर्ट ने लगाया सूचना आयुक्त पर 40 हजार रुपए का जुर्माना

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✒️ विलोक पाठक

न्यूज़ इन्वेस्टिगेशन

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी न देने और अपील खारिज करने के मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। जस्टिस विवेक अग्रवाल की एकलपीठ ने सूचना आयुक्त द्वारा अपील खारिज करने के आदेश को निरस्त करते हुए उन पर 40 हजार रुपए का जुर्माना लगाया है। साथ ही कोर्ट ने यह स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि अपीलकर्ता को पूरी जानकारी बिल्कुल मुफ्त उपलब्ध कराई जाए, जिसके लिए उससे 2.38 लाख रुपए की भारी-भरकम राशि मांगी गई थी।

भोपाल के एक फिल्म निर्माता नीरज निगम ने 26 मार्च 2019 को सूचना के अधिकार के तहत एक सरकारी विभाग से कुछ महत्वपूर्ण जानकारी मांगी थी। लेकिन निर्धारित समयसीमा (30 दिन) बीतने के बावजूद उन्हें कोई जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई। आरटीआई अधिनियम के तहत किसी भी आवेदक को 30 दिनों के भीतर मांगी गई सूचना देना अनिवार्य है, लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ, तो नीरज निगम ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। मामले की सुनवाई गुरुवार को न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की एकलपीठ में हुई। इस दौरान अपीलकर्ता के अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने कोर्ट के समक्ष ठोस तर्क प्रस्तुत किए। उन्होंने बताया कि आरटीआई अधिनियम के तहत सूचना देने की समयसीमा 30 दिन होती है, लेकिन सूचना अधिकारी ने जानबूझकर जानकारी न देकर अपीलकर्ता को परेशान किया और फिर अनुचित रूप से भारी-भरकम शुल्क वसूलने की कोशिश की। अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने यह भी बताया कि सूचना आयोग ने इस मामले में बिल्कुल भी निष्पक्षता नहीं बरती और बिना किसी तथ्यात्मक आधार के अपील को खारिज कर दिया।

उन्होंने कोर्ट के सामने डिस्पैच रजिस्टर और पोस्टल डिपार्टमेंट के प्रमाण पत्रों के जरिए यह साबित किया कि सूचना अधिकारी की ओर से जानबूझकर देरी की गई और फिर अनावश्यक शुल्क लगाकर अपीलकर्ता को हतोत्साहित करने की कोशिश की गई। सभी तथ्यों को सुनने के बाद जस्टिस विवेक अग्रवाल की पीठ ने सूचना आयोग के रवैये पर कड़ी नाराजगी जताई और कहा कि सूचना आयुक्त को सरकार का एजेंट बनने की जरूरत नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि आयोग को निष्पक्ष रहकर जनता को समय पर सूचना देने की व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए, न कि उनके अधिकारों को कुचलने का कार्य करना चाहिए। कोर्ट ने सूचना आयुक्त द्वारा पारित आदेश को पूरी तरह अनुचित और अवैध करार देते हुए उसे निरस्त कर दिया। साथ ही 40 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया, जिसे सूचना आयुक्त को अपीलकर्ता को मुआवजे के रूप में देना होगा इसके अलावा, कोर्ट ने स्पष्ट आदेश दिया कि अब अपीलकर्ता को मांगी गई पूरी जानकारी बिना किसी शुल्क के उपलब्ध कराई जाए।

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