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हाईकोर्ट में दायर हुई मंदिरों में ब्राह्मण पुजारियों की नियुक्ति के खिलाफ जनहित याचिका

✒️ विलोक पाठक / न्यूज़ इन्वेस्टीगेशन

जबलपुर, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में शासन के अध्यात्म विभाग, भोपाल द्वारा दिनांक 04.10.2018 एवं 04.02.2019 तथा मध्य प्रदेश विनिर्दिष्ट मंदिर विधेयक 2019 की संवैधानिकता को लेकर हाईकोर्ट में अजाक्स संघ द्वारा जनहित याचिका दायर करके चुनौती दी गई है। उक्त जनहित याचिका की प्रारंभिक सुनवाई मुख्य न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत तथा विवेक जैन की खंडपीठ द्वारा की गई।

याचिकाकर्ता के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर एवं पुष्पेंद्र शाह द्वारा कोर्ट को बताया गया कि मध्य प्रदेश शासन द्वारा विनिर्दिष्ट मंदिर विधेयक 2019 की धारा 46 के तहत अनुसूची-एक में मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध मंदिरों तथा अधीनस्थ मंदिरों, भवन तथा अन्य संरचनाओं सहित लगभग 350 से अधिक मंदिरों को अधिसूचित किया गया है, तथा अधिसूचित मंदिरों को मध्य प्रदेश सरकार ने राज्य नियंत्रित के अधीन रखा है, जिनमें पुजारियों की नियुक्तियों से संबंधित राज्य सरकार के अध्यात्म विभाग ने दिनांक 04.02.2019 को नीति/कानून बनाया है, जिसके तहत केवल एक विशेष जाति (ब्राह्मण) को ही पुजारी के पद पर नियुक्ति दिए जाने की व्यवस्था की गई है तथा नियुक्त पुजारी को राजकोष से निर्धारित वेतन का भुगतान किए जाने का भी प्रावधान किया गया है।

अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि उक्त सभी प्रावधान, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16 तथा 21 से असंगत हैं, जो शून्यकरणीय हैं। अधिवक्ता ने कोर्ट को यह भी बताया कि हिन्दू समुदाय में OBC/SC/ST वर्ग भी शामिल हैं फिर हिन्दू संप्रदाय की केवल एक जाति को ही पुजारी नियुक्त किया जाना भारतीय संविधान से असंगत है।

इस के बाद राज्य शासन की ओर से डिप्टी एडवोकेट जनरल अभिजीत अवस्थी द्वारा उक्त जनहित याचिका के दायर होने पर प्रश्न उठाया। उनका तथ्य था कि, याचिकाकर्ता अजाक्स एक कर्मचारियों का संगठन है, जिसे उक्त याचिका दाखिल करने का कानूनी अधिकार नहीं है। उनकी इस दलील पर वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने कोर्ट को बताया कि सदियों से मंदिरों में पूजा-पाठ करने का काम एक जाति (ब्राह्मण) ही करता आ रहा है, जिसमें राज्य सरकार का कोई दखल नहीं रहा है। चूंकि 2019 से राज्य सरकार ने धार्मिक मामलों में दखल देकर वेतन आधारित पुजारी नियुक्त किए जाने का कानून बनाया है, जिसकी जानकारी आम जनता (हिन्दू समुदाय) को नहीं है, क्योंकि उक्त समुदाय आज भी यही जानता है कि मंदिरों में पूजा करने तथा पंडित, पुजारी बनने का अधिकार सिर्फ ब्राह्मण वर्ग को ही प्राप्त है, जिसे बी.पी. मण्डल आयोग तथा रामजी महाजन आयोग ने हिन्दू धर्म शास्त्रों का अध्ययन करके सरकार के समक्ष प्रस्तुत अपनी रिपोर्टों में विस्तृत व्याख्या की है।

उक्त रिपोर्ट के मुताबिक ओबीसी वर्ग में नोटिफाइड सभी जातियों को धर्म शास्त्रों में शूद्र वर्ण से वर्णित किया गया है, उक्त रिपोर्ट में ओबीसी वर्ग को शूद्र (छूने योग्य) वर्ण में तथा SC/ST को पंचम (न छूने योग्य शूद्र) में शामिल किया गया है। लेकिन भारत में 26 जनवरी 1950 के संविधान लागू होने के बाद से देश के सभी नागरिक समान हैं, अनुच्छेद 13, 14 तथा 17 के प्रावधानों से छुआछूत तथा वर्ण व्यवस्था का समापन हो चुका है, तथा जहां कहीं भी विधायिका असमानता पैदा करने वाला कानून बनाती है तो उसे किसी भी व्यक्ति/नागरिक/संगठन द्वारा अनुच्छेद 226 या 32 के तहत चुनौती दी जा सकती है तथा समाज में समानता तथा विकास की मुख्य धारा में लाने हेतु पिछड़े वर्ग को आरक्षण से संबंधित प्रावधान किए गए हैं एवं जहां कहीं भी नियोजन हेतु राजकोष से राशि खर्च की जाएगी वहां आरक्षण के अनुरूप नियुक्तियां देना पड़ेगा।

दिए गए तर्कों से सहमत होते हुए हाईकोर्ट ने याचिका विचारार्थ स्वीकार करते हुए राज्य सरकार के मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव जीएडी, सामाजिक न्याय मंत्रालय, धार्मिक एवं धर्मस्व मंत्रालय एवं लोक निर्माण विभाग को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के अंदर जवाब तलब किया है।

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