दिव्यांगों के लिए परेशानी का सबब बन रहा, शासकीय योजनाओं का लाभ मिलना
Getting benefits of government schemes is becoming a problem for the disabled

विलोक पाठक / न्यूज़ इन्वेस्टीगेशन
जबलपुर – ईश्वरी विधान से वैसे भी दिव्यांग अत्यधिक पीड़ित होते हैं उनकी यह पीड़ा उस समय और बढ़ जाती है जब उन्हें सताया जाए और यह कार्य कर रही हैं उनके कल्याण के लिए चलाई जा रही योजनाएं। उदाहरण के लिए सरकार ने दिव्यांगों के लिए पेंशन योजना शुरू की है जिसका उद्देश्य दिव्यांगों को मदद करना है परंतु वह धरातल पर कितनी फलीभूत है और उसके लिए कितना संघर्ष है यह केवल दिव्यांग और उसके लाचार परिजनों से पूछें।
नगर निगम के माध्यम से दिव्यांग जनों को पेंशन की सुविधा दी जाती है जिसके लिए बाकायदा कागजी कार्यवाही की जाती है। दिव्यांग जन कि पहचान और पात्रता के लिए बाकायदा जिला अस्पताल से दिव्यांग सर्टिफिकेट जारी होता है जो इस समय डिजिटल कार्ड के रूप में चल रहा है। यह कार्ड यूनिक आईडी नंबर के साथ होता है जो कि केंद्र सरकार द्वारा जारी किया जाता है जिसमें बाकायदा बारकोड होता है ताकि जरूरत पड़ने पर संबंधित जगह जहां इसकी आवश्यकता हो उसको स्कैन कर दिव्यांग की पूरी जानकारी मिल सकती है। परंतु शासकीय फरमान में इस समय उस कार्ड को स्वीकार न करते हुए ई-केवाईसी के नाम पर दिव्यांग को पुनः जिला अस्पताल एक फॉर्म लेकर भेजा जाता है जहां पर संबंधित डॉक्टर से सील एवं साइन करवाना होते हैं। विकलांग यह फॉर्म लेकर जिला अस्पताल जाता है जहां उसको स्पष्ट मना कर दिया जाता है। इस मामले में संबंधित डॉक्टर का कहना होता है कि जब डिजिटल कार्ड बना हुआ है और उस पर बारकोड है जिसमें सारी जानकारी है और वह भी केंद्र सरकार ने जारी किया है तो फिर दोबारा सील सिग्नेचर क्यों। इसके चलते दिव्यांग भटकते हुए वापस आता है, नगर निगम में ऐसे कई मामले हैं जिनमें दिव्यांगों की पेंशन रुकी हुई है। सवाल यह उठता है कि यदि व्यक्ति दिव्यांग है तो वह इतनी भाग दौड़ अपने लिए कैसे करेगा। देखा गया है कि मानसिक रूप से दिव्यांग व्यक्ति को उनके परिजन किसी तरह इधर से उधर लेकर भटक रहे हैं। जिम्मेदारों को यह नहीं दिखता कि यदि वह स्वस्थ होता तो उसको सहायता की आवश्यकता क्यों पड़ती। कुल मिलाकर प्रक्रिया इतनी कठिन कर दी जाती है मामूली पेंशन के लिए पीड़ित को मानसिक शारीरिक दोनों रूप से सता दिया जाता है।
वहीं इस मामले में सिविल सर्जन डॉ नवीन कोठारी का कहना है की दिव्यांगों के लिए वाकई सुविधा होना चाहिए। जब केंद्र सरकार का बना हुआ कार्ड है जिसमें सभी जानकारी उपलब्ध है तो फिर किसी भी प्रकार की फॉर्मेलिटी नहीं होना चाहिए। यह कार्ड पूर्णतया जांच करने के बाद ही बनाया जाता है इसलिए दिव्यांगों को भटकाना नहीं चाहिए। इसके अलावा उन्होंने दिव्यांगों के लिए जिला अस्पताल में ही रजिस्ट्रेशन की सुविधा होने की बात शासन से रखने को कही है। फिलहाल दिव्यांगों का रजिस्ट्रेशन घमापुर स्थित पुनर्वास केंद्र में होता है जिससे दिव्यांगों को यहां से वहां भटकना पड़ता है।
नगर निगम द्वारा दिव्यांग पेंशन के फार्म पर फॉर्मेलिटी के बारे में नगर निगम कमिश्नर प्रीति यादव का कहना है कि यह बात संज्ञान में लाई गयी है। वाकई दिव्यांगों को यदि परेशानी हो रही है तो प्रयास किया जाएगा कि उनके लिए नगर निगम द्वारा सारी सुविधाएं उपलब्ध कराई जायें ताकि उनको परेशानी ना हो इस संबंध में शीघ्र ही कार्यवाही की जाएगी।
यदि देखा जाए तो जो वाकई प्रकृति के सताए हुए हैं जो शारीरिक व मानसिक रूप से असक्त हैं उन्हें मात्र 600रु पेंशन और लाडली बहना जैसी दूसरी योजनाओं में 1250 रुपए सरकार दे रही है। अरे जो वाकई इसके हकदार हैं उन्हें दूसरी योजनाओं के बराबर लाभ मिलना चाहिए। सरकार का उद्देश्य विभिन्न तरीके से जरूरतमंद लोगों को लाभ पहुंचाना होता है, परंतु सिस्टम की लापरवाही से यह योजनाएं लोगों के लिए कितनी आसान हैं यह बात पीड़ित और लाचार ही जानते हैं।
@vilok