28 साल से बूढ़ी माँ राम मंदिर के लिए नहीं खा रही अन्न, 5 को पूरा होगा सपना
जबलपुर: पांच अगस्त को राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन होने के साथ ही कई लोगों का सालों का सपना भी पूरा होने वाला है। इनमें से एक हैं, मध्य प्रदेश के जबलपुर की रहने वाली 81 साल की बुजुर्ग महिला उर्मिला देवी। उर्मिला देवी सालों से ना केवल मंदिर बनाए जाने का सपना देख रही हैं, बल्कि उसके लिए कड़ी तपस्या भी कर रही हैं। बता दें कि वो पिछले 28 सालों से फलाहार के साथ राम नाम का जाप करते हुए उपवास पर हैं।
1992 में लिया था अन्न ग्रहण ना करने का संकल्प
जब छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा बहाए जाने के बाद दंगे हुए, तभी उर्मिला देवी ने संकल्प लिया था कि राम मंदिर की नींव रखे जाने तक वे अन्न ग्रहण नहीं करेंगी। वो बीते 28 सालों से केवल फलाहार पर हैं। उन्होंने मंदिर निर्माण के लिए 53 साल की उम्र में उपवास शुरू किया था। उनके लोगों ने उपवास तोड़ने के लिए भी समझाया और मनाया, लेकिन वो अपने फैसले पर टिकी रहीं।
रामलला के पक्ष में फैसला आने पर उर्मिला देवी को हुई बहुत खुशी
जब पिछले साल 9 नवंबर को रामलला के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया तो उर्मिला देवी को बहुत खुशी हुई थी। उन्होंने फैसला सुनाने वाले सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भेजकर बधाई दी थी। अब पांच अगस्त को PM के हाथों राम मंदिर की नींव रखी जाएगी। इस दिन उर्मिला देवी दिनभर अपने घर में राम नाम का जाप करेंगी।
राम लला के दर्शन करना चाहती हैं उर्मिला देवी
उर्मिला देवी चाहती हैं कि वो अयोध्या में राम लला के दर्शन करने के बाद ही अपना उपवास तोड़े और अन्न ग्रहण करें। हालांकि उनके घर वाले उन्हें समझा रहे हैं कि कोरोना वायरस के चलते केवल आमंत्रित लोग ही अयोध्या जा सकते हैं। ऐसे में उन्हें अपना उपवास तोड़ लेना चाहिए लेकिन वे मानने को तैयार नहीं हैं।
राम मंदिर बनना उनके लिए पुनर्जन्म जैसा
उर्मिला देवी का कहना है कि अयोध्या में राम मंदिर बनना उनके लिए पुनर्जन्म जैसा है। उनका कहना है कि उनका संकल्प पूरा हो गया है और अब वो अपनी बाकी की बची हुई जिंदगी को अयोध्या में बिताने की इच्छा रखती हैं। इसलिए उन्हें थोड़ी सी जगह चाहिए। इसके अलावा उन्हें भूमि पूजन में शामिल न हो पाने का दुख भी है। लेकिन इसे राम की इच्छा मानते हुए वे संतोष कर रही हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि कुछ लोग इसे कोरोना वायरस की समाप्ति से जोड़कर अंधविश्वास फैलाने में लगे हैं।