जानें क्या है गंड मूल नक्षत्र, मघा नक्षत्र के इस चरण में जन्म होने पर मिलता है राजकीय सम्मान
पं. नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री 9993652408
किसी बच्चे का जन्म “गंड मूल नक्षत्र” में होता है तो क्या वाकई गंड मूल नक्षत्र में जन्मे बच्चे स्वयं या परिवार के लिए परेशानी लाते हैं? इस स्थिति में शांति पाठ कराना कितना फलदायी है? इन तमाम सवालों पर विचार करने से पहले जानते हैं कि गंड मूल नक्षत्र है क्या? धर्मशास्त्रों में कुल 27 नक्षत्रों का वर्णन मिलता है, जिनमें से कुछ नक्षत्र शुभ, तो कुछ अशुभ माने जाते हैं ज्योतिषाचार्य पं. नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने बताया कि कुछ नक्षत्रों को ही गंड मूल नक्षत्र कहा जाता है, वैदिक ज्योतिष के अनुसार, इस श्रेणी में आने वाले नक्षत्र हैं अश्विनी, आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल और रेवती। इन नक्षत्रों का जातक पर शुभ और अशुभ, दोनों प्रभाव होता है और इसका विचार कुंडली में इन छह नक्षत्रों में किसी एक में चंद्रमा की स्थिति, और नक्षत्र किस भाव में है, को देख कर किया जाता है। ठीक 27 दिन के बाद यह नक्षत्र पुन: आता है, इन सभी नक्षत्रों के कुल चार चरण होते हैं, और इसी चरण के हिसाब से जातक पर इसके प्रभाव की गणना की जाती है। उदाहरण के लिए, अश्वनी के पहले चरण में पैदा होने पर पिता को कष्ट जरूर होता है, बाकी तीन चरणों में जन्म होने पर सुख-संपत्ति, राजनीति में सफलता और राजकीय पुरस्कार आदि मिलता है। इसी तरह अश्लेषा के पहले चरण में जन्म लेने वाले बच्चे के लिए अगर शांति की पूजा करा ली जाए, तो बच्चे को शुभ फल मिलते हैं, लेकिन बाकी तीन चरणों में जन्म लेने पर धन की हानि, माता और पिता को तकलीफ पहुंचती है।
मघा नक्षत्र के पहले दो चरण में ही माता और पिता को कष्ट होता है, बाकी के दो चरणों में बच्चे को अच्छा-खासा धन और उच्चशिक्षा प्राप्त होती है। वहीं ज्येष्ठा के चारों चरण कष्टकारी हैं। जबकि मूल नक्षत्र के पहले तीन चरणों में माता-पिता को हानि होती है, लेकिन चौथे चरण में शांति कराने के बाद फायदा होता है। और आखिर में रेवती नक्षत्र! इसमें केवल अंतिम चरण में बच्चे को तरह-तरह के कष्ट मिलते हैं, लेकिन पहले तीन चरणों में जन्म होने पर राजकीय सम्मान, धन-दौलत की वृद्धि और व्यापार में फायदा होता है। ऐसे में शांति नहीं करवाने पर इन गंड मूल नक्षत्रों में जन्मा बच्चा माता-पिता, अपने कुल या अपने ही शरीर को क्षति पहुंचाता है। इस स्थिति में ज्योतिष के कहे अनुसार शांति की पूजा करा लेनी चाहिए। पूजा कराने के बाद ही पिता को अपने बच्चे को देखना चाहिए।