टॉप न्यूज़देश

“भारतीय सेना के बदौलत मिली स्वाधीनता”

✍️ प्रो.डॉ.आनंद सिंह राणा (प्रसिद्ध इतिहासकार)
अंग्रेजों के विरुद्ध भारत के स्वाधीनता संग्राम में भारतीय सेना की महत्वपूर्ण भूमिका रही है और भारत की स्वाधीनता पर अंतिम मुहर सेना ने ही लगाई थी। यह मत प्रवाह कि उदारवादियों ने स्वाधीनता दिलाई बहुत ही हास्यास्पद सा लगता है क्योंकि सन् 1940 में द्विराष्ट्र सिद्धांत की घोषणा हुई और भारत के विभाजन पर संघर्ष मुखर हो गया था, परिस्थितियां विपरीत बनती गईं, विभाजन को लेकर तथाकथित राष्ट्रीय आंदोलन बिखर गया था। स्वाधीनता का श्रेय लेने वाला उदारवादी दल बिखर गया था और वह जिन्ना को नहीं संभाल पाया। अंततोगत्वा भारत के विभाजन को लेकर हिंदू – मुस्लिम विवाद आरंभ हुए और बरतानिया सरकार के विरुद्ध संग्राम लगभग समाप्त हो गया था। सन् 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन ने 3 माह में ही दम तोड़ दिया था तो दूसरी ओर विभाजन तय दिखने लगा था। ऐंसी परिस्थिति में महात्मा गांधी किंकर्तव्यविमूढ़ हो गए थे और बाद में विनाशकारी निर्णय में सम्मिलित भी हो गए। सन् 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हुआ और उसके उपरांत इंग्लैंड में लेबर पार्टी की सरकार बनी। इंग्लैंड के प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने जून 1948 तक भारत छोड़ने की घोषणा की परंतु विभाजन कर,एक वर्ष पूर्व ही अंग्रेजों ने 15 अगस्त सन् 1947 में भारत छोड़ दिया। यह सन् 1956 तक बहुत ही रहस्यमय बना रहा कि आखिर ऐंसा क्या हो गया था? कि ब्रिटानिया सरकार ने 1 वर्ष पूर्व ही भारत छोड़ दिया। इस रहस्य का खुलासा सन् 1956 में क्लीमेंट एटली ने किया,जब वे सेवानिवृत्त होने के बाद कलकत्ता आए, वहां पर गवर्नर ने एक भोज के दौरान उनसे पूंछा कि आखिरकार ऐसी कौन सी हड़बड़ी थी कि आपने 1 वर्ष पहले ही भारत छोड़ दिया, तब क्लीमेंट एटली ने जवाब दिया कि सन् 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के असफल हो जाने के बाद महात्मा गांधी हमारे लिए कोई समस्या नहीं थे, परंतु नेताजी सुभाष चंद्र बोस और उनकी आजाद हिंद फौज के कारण भारतीय सेना ने हमारे विरुद्ध विद्रोह कर दिया था। तत्कालीन भारत के सेनापति अचिनलेक ने अपने प्रतिवेदन में सन् 1946 में जबलपुर से थल सेना के सिग्नल कोर के विद्रोह, बंबई से नौसेना का विद्रोह, करांची और कानपुर से वायु सेना के विद्रोह का हवाला देते हुए स्पस्ट कर दिया था कि अब भारतीय सेना पर हमारा नियंत्रण समाप्त हो रहा है जिसका तात्पर्य है कि अब भारत पर और अधिक समय तक शासन करना असंभव होगा, और यदि शीघ्र ही यहां से हम लोग वापस नहीं गए तो बहुत ही विध्वंस कारी परिस्थितियां निर्मित हो सकती हैं और यही विचार अन्य विचारकों का भी था। इसलिए हमने 1 वर्ष पूर्व ही भारत छोड़ दिया परंतु भारतीय इतिहास में सेनाओं के स्वाधीनता संग्राम को विद्रोह का दर्जा देकर दरकिनार कर दिया गया। स्वाधीनता के अमृत महोत्सव पर यह श्रेय भारतीय सेना को ही जाना चाहिए। यह गौरतलब है कि माउंटबेटन और एडविना ने जो अपनी डायरियाँ लिखी थीं, वे वसीयत के अनुसार इंग्लैंड के एक विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी में सुरक्षित कराई थीं, हाल ही में इंग्लैंड में एक पत्रकार ने सूचना के अधिकार के अंतर्गत इनकी जानकारी मांगी है, तथा एक पुस्तक “one life many loves” शीघ्र ही प्रकाशित होने वाली है, परंतु इंग्लैंड की सरकार, दबाव बना रही है, कि माउंटबेटन की डायरियों का खुलासा ना किया जाए क्योंकि यदि माउंटबेटन और एडविना की डायरियों का खुलासा हुआ तो बहुत से उदारवादी निर्वस्त्र हो जाएंगे और सत्ता के लिए संघर्ष का भी आईना साफ हो जाएगा। आशा करते हैं कि बहुत जल्दी ही यह पुस्तक प्रकाशित होकर सबके सामने आए।
जय हिंद की सेना 🙏जय हिंद

Tags

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Close
Close