टैक्स स्लेब को मंहगाई के हिसाब से युक्ति संगत न करना करदाताओं के साथ अन्याय
अनिल अग्रवाल – (C A)
बजट के बाद वित्त मंत्री ने कहा कि टैक्स दरों में कोई बदलाव नहीं करना ही सरकार की तरफ से राहत है.राजस्व सचिव ने एक कदम आगे जाकर आंकड़ा दिया कि औसत टैक्स वेतनभोगी द्वारा रु 90000/- दिया जाता है जबकि व्यापारी और पैशेवर द्वारा औसत टैक्स 40000/- रुपये दिया जाता है, जो कि आश्चर्यजनक है.इसी तरह 7.50 करोड़ लोग रिटर्न फाइल करते हैं और उसमें 75% बिना टैक्स की रिटर्न फाइल करते हैं, 17% लोग 5-10 लाख की आय बताते हैं और बाकी 8% ही 10 लाख रुपये से ऊपर की आय बताते हैं.यानि 1.50 करोड़ करदाता ही देश के राजस्व की पूर्ति करते हैं और उन्हीं के ऊपर सबसे ज्यादा अनुपालन, सरचार्ज और नियम लागू होते हैं.क्या पिछले 10 सालों में सरकार यह नहीं जान पाई कि आखिर टैक्स देने वाले इतने कम लोग क्यों है, क्यों व्यापारी कम टैक्स देते हैं, आखिर क्यों सरकार को राहत न देने के बहाने सोचने पड़ते हैं, क्यों सरकार यह नहीं समझ पा रही कि आसान और सरल कर प्रणाली से ज्यादा राजस्व अर्जित होगा.पैशेवरों को प्रायः यह कहते सुना जाता है कि जितना काम्लिकेटेड सिस्टम होगा उतना काम बढ़ेगा, पर यह धारणा पूरी तरह गलत है- उल्टा जितने लोग कर दायरे में आऐंगे, उतना ज्यादा आपको काम मिलेगा और राजस्व में अधिक योगदान दे पाएंगे.बजट 2022 लागू करने से पहले सरकार को इन बिन्दुओं पर ध्यान देना चाहिए, जो राजस्व भी बढ़ाएंगे और जनता को राहत भी देंगे:
1. जिसकी आय 5 लाख रुपये से एक रुपए भी ज्यादा है, उसे लगभग 13000/- रुपये टैक्स देना पड़ता है जबकि 5 लाख रुपये तक रीबेट होने के कारण कोई टैक्स नहीं है. इस कारण से कई करदाता जो 5 लाख से ऊपर है वो अपनी आय 5 लाख तक सीमित कर टैक्स नहीं देना चाहते.इसका यही उपाय है कि टैक्स स्लेब को 5 लाख तक करमुक्त कर देना चाहिए और आयकर का स्लेब 5 लाख से 10 लाख तक 10%, 10 लाख से 15 लाख तक 20% और 15 लाख से ऊपर 30% होना चाहिए. ऐसा करने से लगभग 2 करोड़ रिटर्न 5 लाख से 15 लाख के स्लेब में आ सकती है.
2. स्लेब एक प्रकार का ही लागू हो- नये और पुराने कर प्रणाली में लोगों को कन्फ्यूजन ज्यादा है और दूसरी तरफ सरकार निवेश एवं बचत तथा अन्य जरूरत के क्षेत्रों को बढ़ावा देना नहीं छोड़ सकती, इसलिए पुराने टैक्स सिस्टम को अपग्रेड कर लागू करना चाहिए.
इस समय ज्यादातर लोग जो नये टैक्स सिस्टम को अपना रहे हैं, वे अपनी बचत को खर्चे में दिखाकर पुराने और नए सिस्टम दोनों का गलत रुप से उपयोग कर टैक्स बचा रहे हैं.
3. हेल्थ और शिक्षा उपकर अटल बिहारी सरकार के समय कुछ अवधि के लिए कहकर लगाया गया था, जो अब न केवल परमानेंट हो गया बल्कि बड़े करदाता पर सरचार्ज लगाना भी कहीं से न्याय संगत नहीं लगता.
आप सारे सरचार्ज और उपकर हटाकर 1 करोड़ रुपये से ऊपर की आय पर 35% का टैक्स स्लेब लगाकर प्रणाली आसान कर सकते हैं.
4. बहुत सारी आयकर रिटर्न सिर्फ नाम के लिए भरी जाती है जिसका उपयोग सिर्फ फर्जी पूंजी एवं अन्य निवेश के लिए किया जाता है. इस पर लगाम कसना जरुरी है और ऐसी रिटर्न जिसमें 5 साल से कोई टैक्स नहीं भरा गया, उन्हें चिन्हित कर जांच की जावे ताकि रिटर्न फाइल करने वाले असली करदाता पहचाने जा सके. ऐसी गैर जरूरी रिटर्न का पेन नं कैंसिल कर सही करदाता कितने है, वह आंकड़ा जानना जरूरी है.
5. एक ही व्यापार और परिवार में कई फाइलें बनाकर जो एचयूएफ और फर्मों के नाम पर बनाकर आय को विभाजित कर टैक्स बचाना आम तरीका है. इसलिए एचयूएफ का कांसेप्ट खत्म करना होगा और फर्मैं जो टैक्स भरती है, उन्हें ही चालू रखा जावेगा.
शेयरों में निवेश सिर्फ उन्हीं को मान्य होगा जो टैक्स भरते है न कि सिर्फ नाम के लिए रिटर्न भरने वाले. अत: निवेश सरकारी प्रतिभुति, पोस्ट आफिस या बैंक के अलावा कहीं और करना है तो सिर्फ टैक्स देने वाला करदाता ही कर सकता है. अन्य व्यक्ति को आनलाइन विभाग से अनुमति लेनी पड़ेगी ताकि उसकी प्रोफाइल पर विभाग की नजर बनी रहें.
6. कैश लेनदेन में रोकटोक और कड़े अनुपालन एक समांतर अर्थव्यवस्था को जन्म दे रहे हैं और आज लगभग हर व्यापारी 50% लेनदेन कैश में करता है, सिर्फ इसलिए नहीं कि टैक्स नहीं भरना चाहता बल्कि इसलिए की मार्केट में टिकना है और काम्पीटिशन फेश करते हुए धंधा चलाना है. सरकार भी भलिभांति जानती है कि मार्केट में कैश का कितना सर्कुलेशन है, इसलिए कैश लेनदेन पर कड़े अनुपालन की बजाय इसे तर्कसंगत बनाना जरूरी है ताकि कैश लेनदेन रिकॉर्ड पर आए और राजस्व अधिक मिल सकें.
7. ऐसे नियम जो करदाता को विभागीय अधिकारी का काम करने को कह रहे. जैसे धारा 206 एबी में करदाता किसी को पेमेंट देने से पहले ये जानकारी ले कि वो आयकर रिटर्न फाइल करता है या नहीं, उसका टीडीएस कितना कटता है, आदि और इस बजट में जो प्रस्तावित किया गया कि धारा 68 के अन्तर्गत कोई क्रेडिट एंट्री है तो उसे देने वाले का सोर्स साबित करना होगा. अब करदाता अपना सोर्स तो बता सकता है लेकिन थर्ड पार्टी का सोर्स उसके लिए बताना कैसे मुमकिन है तथा नहीं बता पाने पर करदाता की आय मानी जाना गैर जरूरी कदम है जिससे व्यापारी कानूनी काम करने से छिड़केंगे.गैर जरूरी कदम और नियम जो साफ तौर पर व्यापारी को परेशान करेंगे, ऐसे में अपेक्षा करना की राजस्व अधिक होगा उचित नहीं है. राजस्व सचिव को आंकड़े पेश करते समय यह समझना जरुरी है कि सरकारी नीतियों और नियमों में क्या खामियां है जिनमें सुधार की जरूरत है. सुधार एक तरफा नहीं होता. साफ है यदि सरकार सही मायनों में टैक्स देने वाले करदाता बढ़ाना चाहती है, व्यापारियों से अधिक टैक्स चाहती है और टैक्स- जीडीपी अनुपात में बढ़ोत्तरी चाहती है तो विचार करना पड़ेगा कि टैक्स सरलीकरण की क्या दिशा होनी चाहिए- राजस्वजीवी या पेनल्टीजीवी, सुधारवादी या दण्डनीय, प्रोत्साहन या हत्तोत्साहन.