समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर संतों एवं गणमान्य नागरिकों ने सौंपा राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट के नाम ज्ञापन
जबलपुर समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर आज संतों के नेतृत्व में जबलपुर के गणमान्य नागरिकों ने माननीया राष्ट्रपति और माननीय सर्वोच्च न्यायालय के नाम का ज्ञापन कलेक्टर महोदय को सौंपा. जगतगुरु राघवदेवाचार्य जी, नरसिंह पीठाधीश्वर महंत डॉ नरसिंह दास जी, पीठाधीश्वर महंत दस महाविद्या पीठ कालीनंद जी, और साध्वी ज्ञानेश्वरी दीदी ने मीडिया से कहा कि विवाह संस्था समाज की व्यवस्था का आधार है. परिवार व कुटुंब का आधार है. भारत विभिन्न पंथों-सम्प्रदायों, जातियों-उप जातियों तथा परंपराओं का देश है। इन सभी जीवन धाराओं ने शताब्दियों से केवल जैविक पुरूष एवं जैविक महिला के मध्य विवाह को मान्यता दी है.
उन्होंने आगे कहा कि विवाह अधिनियम, मात्र जैविक पुरूष और महिला पर लागू होता है भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नालसा (2014), नवतेज जौहर (2018) के मामलों में समलैंगिकों एवं विपरीत लिंगी (Transgender) के अधिकारों को पहले ही संरक्षित किया है। स्पष्ट है कि यह समुदाय, उत्पीड़ित या असमानता पीड़ित नहीं है.
विधायिका ने पहले ही उपरोक्त निर्णयों के आधार पर कार्यवाही कर ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2019 को अधिनियमित किया है और इसलिये भेदभाव का प्रश्न ही नहीं उठता है. विवाह संस्था समाज व्यवस्था और मानव समाज की निरंतरता के लिए है, उससे छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए.
संतों ने आगे कहा कि भारत का संविधान विधायिका और न्यायपालिका के बीच संतुलन स्थापित करता है. इसलिए विवाह को नये तरीके से परिभाषित करना, उसे नये स्वरूप में लिखना, विधायिका से कानून बनाने की शक्ति ले लेना माना जावेगा। अतः यह निर्णय संसद को लेने दिया जाए एवं सभी पहलुओं पर समग्रता से विचार किया जाए. इस अवसर पर महंत राजारामाचार्य जी,महंत रामजीशरण जी, महंत प्रकाशानंद जी, साध्वी ज्ञानेश्वरी दीदी, महंत साध्वी संगीतागिरी, महंत रामेश्वरानानद जी, महंत रामानंदपुरी जी, महंत मयंक शास्त्री जी, स्वामी रामभारती जी एवं सैकड़ों की संख्या में नागरिक उपस्थित थे. इसके पूर्व घंटाघर पर संतों के नेतृत्व में जनसमुदाय एकत्रित हुआ और ज्ञापन लेकर पैदल कलेक्ट्रेट तक पहुँचे.