पिछले 1 साल में ‘तीन तलाक’ की घटनाओं में 82 प्रतिशत कमी आई : नकवी
ट्रिपल तलाक कानून के अस्तित्व में आए एक अगस्त को एक साल पूरा हो जाएगा। ऐसे में केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा है कि पिछले एक साल के दौरान ‘तीन तलाक’ या ‘तिलाके बिद्दत’ की घटनाओं में 82 प्रतिशत से ज्यादा की कमी आई है, और जहां कही ऐसी घटना हुईं, वहां कानून ने अपना काम किया है।
अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने यहां जारी एक बयान में कहा, “वैसे तो अगस्त का महीना इतिहास में महत्वपूर्ण घटनाओं से भरपूर है, आठ अगस्त ‘भारत छोड़ो आंदोलन’, 15 अगस्त भारतीय स्वतंत्रता दिवस, 19 अगस्त ‘विश्व मानवीय दिवस’, 20 अगस्त ‘सद्भावना दिवस’, पांच अगस्त को अनुच्छेद 370 खत्म होना जैसे इतिहास के सुनहरे लफ्जों में लिखे जाने वाले दिन हैं। लेकिन एक अगस्त मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक की कुप्रथा, कुरीति से मुक्त करने का दिन है, जो भारत के इतिहास में ‘मुस्लिम महिला अधिकार दिवस’ के रूप में दर्ज हो चुका है।”
उन्होंने कहा, “तीन तलाक या तिलाके बिद्दत जो न संवैधानिक तौर से ठीक था, न इस्लाम के नुक्तेनजर से जायज था। फिर भी हमारे देश में मुस्लिम महिलाओं के उत्पीड़न से भरपूर गैर-कानूनी, असंवैधानिक, गैर-इस्लामी कुप्रथा तीन तलाक, वोट बैंक के सौदागरों के सियासी संरक्षण में फलता-फूलता रहा।”
नकवी ने कहा, “एक अगस्त, 2019 भारतीय संसद के इतिहास का वह दिन है, जिस दिन कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी, सपा, बसपा, तृणमूल कांग्रेस सहित तमाम तथाकथित सेक्युलरिज्म के सियासी सूरमाओं के विरोध के बावजूद तीन तलाक कुप्रथा को खत्म करने के विधेयक को कानून बनाया गया।”
नकवी ने कहा, “तीन तलाक कुप्रथा के खिलाफ कानून तो 1986 में भी बन सकता था, जब शाहबानों केस में सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक पर बड़ा फैसला लिया था। उस समय लोकसभा में अकेले कांग्रेस सदस्यों की संख्या 545 में से 400 से ज्यादा और राज्यसभा में 245 में से 159 थी। लेकिन कांग्रेस की राजीव गांधी की सरकार ने पांच मई, 1986 को इस संख्या बल का इस्तेमाल मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को कुचलने और तीन तलाक क्रूरता-कुप्रथा को ताकत देने के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी बनाने के लिए संसद में संवैधानिक अधिकारों का इस्तेमाल किया।”