जानिए क्यों,प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भूमिपूजन से पहले हनुमान गढ़ी मंदिर में पूजा-अर्चना करेंगे
अयोध्या| भगवान हनुमान को अयोध्या और राम भक्तों का रक्षक कहा जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब बुधवार को ‘भूमिपूजन’ के लिए अयोध्या आएंगे, तो सबसे पहले हनुमान गढ़ी मंदिर में पूजा-अर्चना करेंगे। हनुमान गढ़ी मंदिर के मुख्य पुजारी महंत राजू दास के अनुसार, ” ‘भूमिपूजन’ के लिए जाने से पहले प्रधानमंत्री हनुमान गढ़ी मंदिर में लगभग सात मिनट तक पूजा-अर्चना करेंगे। उनके लिए यहां एक विशेष पूजा की व्यवस्था की गई है। ‘भूमिपूजन’ अनुष्ठान वास्तव में 4 अगस्त से हनुमान गढ़ी में शुरू होगा। ऐसा माना जाता है कि किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले, भगवान हनुमान की पूजा-अर्चना करनी चाहिए और रक्षा का आशीर्वाद मांगना चाहिए।”
बुधवार को ‘भूमिपूजन’ होने के साथ लगभग 166 साल पुराना विवाद खत्म हो जाएगा।
मंदिर पर विवाद 1853 में शुरू हुआ था। मस्जिद के निर्माण के बाद, हिंदुओं ने आरोप लगाया कि मस्जिद का निर्माण जिस स्थान पर हुआ है, वह पहले भगवान राम का मंदिर था, जिसे मस्जिद के निर्माण के लिए ढहा दिया गया था।
1885 में, यह मामला पहली बार अदालत में पहुंचा जब महंत रघुबर दास ने बाबरी मस्जिद से सटे राम मंदिर बनाने की अनुमति के लिए फैजाबाद अदालत में अपील दायर की।
ब्रिटिश सरकार ने 1859 में विवादित भूमि के अंदरूनी और बाहरी परिसर में मुसलमानों और हिंदुओं को अलग-अलग प्रार्थनाओं की अनुमति देने के लिए एक तार की बाड़ लगाई।
23 दिसंबर, 1949 को इस केंद्रीय स्थल पर भगवान राम की एक मूर्ति रखी गई थी। इसके बाद, हिंदुओं ने नियमित रूप से उस स्थान पर पूजा करना शुरू कर दिया, जबकि मुसलमानों ने वहां नमाज अदा करना बंद कर दिया।
16 जनवरी 1950 को गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद अदालत में अपील दायर की, जिसमें राम लला की पूजा करने की विशेष अनुमति मांगी गई।
कुछ महीने बाद, 5 दिसंबर 1950 को, महंत परमहंस राम चंद्र दास ने भी हिंदू प्रार्थनाओं को जारी रखने और विवादित ढांचे में भगवान राम की मूर्ति रखे जाने के लिए मुकदमा दायर किया।
नौ साल बाद, 17 दिसंबर 1959 को, निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल को ट्रांसफर करने के लिए मुकदमा दायर किया और 18 दिसंबर, 1961 को, उत्तर प्रदेश के सुन्नी वक्फ बोर्ड ने भी मुकदमा दायर कर बाबरी मस्जिद के स्वामित्व को मांगा और मूर्तियों को मस्जिद परिसर से हटाने की मांग की।
1984 में, विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने विवादित ढांचे के ताले खोलने के लिए एक अभियान शुरू किया। इसके लिए एक समिति भी बनाई गई थी।
फैजाबाद के जिला न्यायाधीश के.एम. पांडे ने 1 फरवरी, 1986 को हिंदुओं को विवादित स्थल पर पूजा करने की अनुमति दी।
ताले फिर से खोल दिए गए, लेकिन इसने कुछ मुस्लिम संगठनों को नाराज कर दिया और उन्होंने विरोध करने के लिए बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया।
1989 में, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) को औपचारिक समर्थन देने की घोषणा की, जिससे मंदिर आंदोलन को एक नया जीवन मिला।
यह वह पड़ाव था जब राम मंदिर के लिए एक बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू हुआ, जिसने आने वाले वर्षो में राष्ट्रीय राजनीति की रूपरेखा बदल कर रख दी।
1 जुलाई 1989 को भगवान रामलला विराजमान के नाम पर पांचवा मुकदमा दायर किया गया।
तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 9 नवंबर, 1989 को विवादित ढांचे के पास ‘शिलान्यास’ (शिलान्यास करने) की अनुमति दी।
जैसे ही मंदिर आंदोलन को गति मिली, सितंबर 1990 में, तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष, लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथ यात्रा शुरू की।
लालू यादव सरकार द्वारा आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया।
अक्टूबर 1991 में, उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह सरकार ने विवादित ढांचे के पास 2.77 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया और इसे राम जन्मभूमि न्यास को पट्टे पर दे दिया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हालांकि आदेश दिया कि कोई भी स्थायी ढांचा वहां नहीं बनाया जाएगा।
मंदिर आंदोलन 6 दिसंबर, 1992 को उस समय चरम पर पहुंच गया जब एक साथ आए हजारों ‘कारसेवकों’ ने विवादित ढांचे को ध्वस्त कर दिया, जिससे देश भर में सांप्रदायिक दंगे हुए।
मस्जिद के विध्वंस के लिए जिम्मेदार लोगों की जांच के लिए कुछ दिनों बाद लिब्रहान आयोग का गठन किया गया।
जनवरी 2002 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यालय में एक अयोध्या विभाग शुरू किया। इस विभाग का काम हिंदुओं और मुसलमानों के बीच विवाद को हल करना था।
उसी वर्ष अप्रैल में, तीन-न्यायाधीशों वाली पीठ ने अयोध्या में विवादित स्थल के स्वामित्व पर सुनवाई शुरू की।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्देशों के तहत 2003 में अयोध्या में खुदाई शुरू की। एएसआई ने दावा किया कि विवादित ढांचे के नीचे मंदिर के अवशेष होने के प्रमाण थे, लेकिन मुसलमानों में इसके बारे में अलग-अलग राय थी।
सितंबर 2010 में, इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया और विवादित भूमि को तीन भागों में विभाजित किया – एक हिस्सा राम मंदिर को दिया गया, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड को और तीसरा निर्मोही अखाड़ा को मिला।
हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी और विवाद को सुलझाने के सौहार्दपूर्ण प्रयासों के बाद शीर्ष अदालत ने 9 नवंबर, 2019 को अपना फैसला दिया कि विवादित भूमि हिंदुओं को मंदिर निर्माण के लिए दी जाएगी। और मस्जिद के निर्माण के लिए अलग से अयोध्या में मुसलमानों को 5 एकड़ जमीन दी जाएगी।
अदालत ने मंदिर निर्माण की देखरेख के लिए सरकार को एक ट्रस्ट स्थापित करने के लिए कहा।
मंदिर निर्माण शुरू करने के लिए श्री राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट की स्थापना इस वर्ष फरवरी में की गई।
अगर कोरोना महामारी और राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन नहीं होता, तो अप्रैल में राम नवमी पर मंदिर का निर्माण शुरू हो जाता।
इस बीच, राज्य सरकार ने अयोध्या में धन्नीपुर में मुसलमानों को पांच एकड़ जमीन दी है।