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निशंक ने कहा- नई शिक्षा नीति आने के बाद कश्मीर का युवा पत्थर नहीं, लैबोरेट्री में टूल्स उठाएगा

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति आने के बाद जम्मू-कश्मीर का युवा हथियार या पत्थर नहीं बल्कि लैबोरेट्री में टूल्स उठाएगा, अपने भविष्य का निर्माण करेगा। वह स्किल और नॉलेज युक्त होगा और नए भारत की तस्वीर उसकी योग्यताओं से निर्मित होगी।

सोमवार को वीडियो कॉन्फ्ऱेंसिंग से आयोजित जम्मू यूनिवर्सिटी को संबोधित करते हुए केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने यह बात कही। जम्मू यूनिवर्सिटी का यह कार्यक्रम नई शिक्षा नीति के कार्यान्वयन पर आयोजित किया गया था। कार्यक्रम में जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा, जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव बी.वी. आर सुब्रह्मण्यम, केंद्र शासित प्रदेश के विभिन्न विश्वविद्यालय और संस्थाओं के प्रमुख शिक्षाविद् और कुलपति एकत्रित हुए।

इस अवसर पर डॉ. निशंक ने कहा, “हम सभी जानते हैं कि जम्मू-कश्मीर की परिस्थितियां बिल्कुल भिन्न हैं। यहां तीन सभ्यता रही हैं, तीन अलग-अलग भौगोलिक परिस्थितियां, तीन अलग संस्कृतियां रही हैं। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर ने बहुत सारी चुनौतियों का सामना किया है। लेकिन अब एक भारत के बैनर तले विकास और प्रगति के मार्ग पर हम तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। चाहे सड़कों का विकास हो या फिर नए संस्थानों की स्थापना, हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री जी का लक्ष्य है कि जम्मू कश्मीर को विकास की मुख्यधारा से जोड़ा जाए।”

केंद्रीय मंत्री ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कार्यान्वयन के लिए लीडरशिप की भूमिका को अहम बताते हुए कहा, “नीति निर्माण एक मूलभूत एवं नीतिगत विषय है और नीति क्रियान्वयन रणनीतिक विषय है। इन दोनों के बीच लीडरशिप की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, वो भी ऐसी लीडरशिप जो नीति को जमीन पर उतार सके।”

डॉ. निशंक ने सभी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों, शिक्षाविदों से कहा, “आप सभी संस्थानों के लीडर होने के साथ-साथ एक शिक्षक और मार्गदर्शक भी हैं। शिक्षक इस नीति का वो टूल है जिस पर पूरी नीति का कार्यान्वयन निर्भर करता है। एक ओर छात्र जहां केंद्रबिंदु हैं तो शिक्षक उसका फोकल पॉइंट है।”

नई शिक्षा नीति के कार्यान्वयन पर केंद्रीय मंत्री ने कहा, “आप सभी को अपनी यूनिवर्सिटी, अपने संस्थानों या अधिकार क्षेत्र में आने वाले सभी क्षेत्रों में इस नीति के लिए एक्शन प्लान बनाने की जरूरत है। न केवल एक्शन प्लान बल्कि उसे एक टाइमलाइन से जोड़कर, कैसे क्रियान्वित किया जा सकता है, इस पर काम करने की जरूरत है। हम विश्वविद्यालय, संस्थानों की ऑटोनॉमी (स्वायत्तता), उनके प्रशासन, उनके सशक्तिकरण और विकेंद्रीकरण के लिए प्रतिबद्ध हैं। साथ ही हम अपने शैक्षणिक संस्थाओं की गुणवत्ता, पाठ्यक्रम आदि को वैश्विक मंच पर स्थापित करने और वैश्विक मानकों के अनुकूल बनाने के लिए भी प्रयासरत हैं।”

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