मांगलिक यह शब्द सुनते ही विवाह का लड्डू नज़र आने लगता है। लेकिन बहुत बार जैसा ऊपरी तौर पर नज़र आता है वैसा असल में नहीं होता है ज्योतिषाचार्य पं. नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने बताया कि शास्त्रों में कहते हैं कि सिर्फ मांगलिक दोष के कारक भाव में मंगल के होने से ही मांगलिक दोष प्रभावी नहीं हो जाती बल्कि उसे घातक अन्य परिस्थितियां भी बनाती हैं। यह हानिकारक तभी होता है जब मंगल निकृष्ट राशि का व पापी भाव का हो। कहने का तात्पर्य है कि मांगलिक मात्र कुंडली का दोष नहीं है बल्कि यह कुछ परिस्थितियों में विशेष शुभ योग भी बन जाता है..
- जब कुंडली में लग्न की दृष्टि से मंगल पहले, दूसरे, चौथे, सातवें, आठवें, या बारहवें स्थान पर हो तो ज्योतिष शास्त्र में इसे मांगलिक दोष मानते हैं।
- यदि दो मांगलिक जातकों का आपस में विवाह करवा दिया जाये तो यही मांगलिक दोष एक बहुत ही शुभ योग बन जाता है।
- इसी तरह यदि चंद्र, राहु, शनि में से कोई भी ग्रह प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, एवं द्वादश भाव में मंगल के साथ मौजूद हो तो मांगलिक दोष समाप्त हो जाता है!
- यदि कुंडली में मंगल स्वराशि का हो या फिर उच्च का होकर मित्र घर में विराजमान हो तो भी मांगलिक दोष निष्प्रभावी रहता है।
- वृष, मिथुन, सिंह, व वृश्चिक लग्न की कुंडली में भी मंगल दोष ज्यादा प्रभावशाली नही होता है।