सूर्य, शनि, राहु अलगाववादी स्वभाव वाले ग्रह हैं वहीं मंगल व केतु मारणात्मक स्वभाव वाले ग्रह है ज्योतिषाचार्य पं. नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने बताया कि ये सभी दाम्पत्य-सुख के लिए हानिकारक होते हैं।
- यदि सप्तम भाव पर राहु, शनि व सूर्य की दृष्टि हो एवं सप्तमेश अशुभ स्थानों में हो एवं शुक्र पीड़ित व निर्बल हो तो व्यक्ति को दाम्पत्य-सुख नहीं मिलता।
- यदि सूर्य-शुक्र की युति हो व सप्तमेश निर्बल व पीड़ित हो एवं सप्तम भाव पर पाप ग्रहों का प्रभाव हो तो व्यक्ति को दाम्पत्य सुख प्राप्त नहीं होता है।
- यदि लग्न में शनि स्थित हो और सप्तमेश अस्त, निर्बल या अशुभ स्थानों में हो तो जातक का विवाह विलम्ब से होता है व जीवनसाथी से उसका मतभेद रहता है।
- यदि सप्तम भाव में राहु स्थित हो और सप्तमेश पाप ग्रहों के साथ छ्ठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो तो जातक के तलाक की संभावना होती है।
- यदि लग्न में मंगल हो व सप्तमेश अशुभ भावों में स्थित हो व द्वितीयेश पर मारणात्मक ग्रहों का प्रभाव हो तो पत्नी की मृत्यु के कारण व्यक्ति को दाम्पत्य-सुख से वंचित होना पड़ता है।
- यदि किसी स्त्री की जन्मपत्रिका में गुरु पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो, सप्तमेश पाप ग्रहों से युत हो एवं सप्तम भाव पर सूर्य, शनि व राहु की दृष्टि हो तो ऐसी स्त्री को दाम्पत्य सुख प्राप्त नहीं होता.!!