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“दुख इस बात का नहीं की बूढी मर गई”… बल्कि “डर इस बात का है कि मौत ने गांव का रूख देख लिया”

विलोक पाठक (N I )

राष्ट्रीय स्तर पर संगठित होकर सत्ता संभालने वाली भाजपा पिछले दिनों हुए नगरी निकाय चुनावों में बिखरी नजर आई, जबलपुर में हुए चुनाव इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण है | चुनाव में छुपकर भितरघात करने वालों पर जिम्मेदारों की चुप्पी , निष्ठावान कार्यकर्ताओं के मन मे कई सवाल खड़े कर रही है… दिखावे के लिए कुछ एक लोगों को निष्कासित कर इतिश्री कर ली गयी ।

पिछले विधानसभा चुनाव में सत्ता हाथ से चली जाने के बाद संगठन ने उसको कितनी गंभीरता से लिया ये बात आम कार्यकर्ता भली भांति जनता है। संगठनात्मक व्यवहार की अपेक्षा कार्यकर्ताओं की उपेक्षा का परिणाम ये हुआ कि, शहर में महापौर प्रत्याशी की हार हाथ लगी | भितरघात और संगठनात्मक रूप से दबी भाजपा इस कदर डर गई कि नगर निगम अध्यक्ष पद के चुनाव के पहले उसे डर सताने लगा की कहीं खुद के पार्षद टूट कर चले ना जाएं… लिहाजा सारे पार्षदों को एक होटल में नजरबंद कर दिया गया | यह स्थिति आखिर क्यों आई … वरिष्ठों के अनुसार इसका मूल कारण है कि संगठनात्मक तरीके से भाजपा कमजोर साबित हो रही है । चुनिंदा चेहरों ने कार्यकर्ताओं को सोचने पर मजबूर कर दिया ।

 पिछले विधानसभा चुनाव हारने के बाद दोबारा सत्ता में आने का जो भी तरीका  हो वो अब उसे भस्मासुर लगने लगा है | इसी के भय के चलते जबलपुर नगरनिगम अध्यक्ष पद के चुनाव में उसे महाराष्ट्र और गोवा की तर्ज पर कार्य करना पड़ा | इस नगरी निकाय चुनाव में भाजपा के अंदरूनी संचालन के तरीके को सार्वजनिक कर दिया | आखिर क्या वजह है की अनुशासन और तटस्थता की बात करने वाली पार्टी और जो चाल चरित्र और चेहरे को स्पष्ट रूप से सामने रखकर कार्य करती हो  उसे अपने पार्षद होटल में नजरबंद करना पड़े | यह बात स्पष्ट है कि यदि संगठन कि कार्यशैली पर गौर न करते हुए  जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं की अनदेखी की गई , तो आने वाले विधानसभा व लोकसभा चुनाव में यही डर सत्यता में बदल सकता है |  तमाम कारणों पर चिंतन ना होने के कारण यह बात जेहन में आती है कि ,आखिर संगठन में बैठे पदाधिकारी कौन से कवच और कुंडल पहने हुए हैं ,जिन पर आला पदाधिकारी मेहरबान हैं | पिछले समय हुयी एक घटना पर अपने मातृ संगठन को हासिये में रख कर अपने को उससे से भी ऊपर समझने वाले आखिर क्यों बच रहे हैं | नीचे से ऊपर तक बदलाव ना होना और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा करना आने वाले विधानसभा और लोकसभा में भाजपा के डर को हकीकत में बदल सकता है | क्योंकि महापौर प्रत्याशी की हार और अपने पार्षदों को होटल में नजरबंद करने वाली बात को देखते हुए एक बात तो स्पष्ट समझ में आ रही है कि……..

 “दुख इस बात का नहीं की बुढ़िया मर गई…. डर इस बात का है कि मौत ने गांव का रुख देख लिया”

By – Vilok Pathak

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