लोकोपयोगी लोक अदालत द्वारा स्वास्थ्य बीमा कंपनियों के विरूद्ध अधिनिर्णय पारित
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण में विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम की धारा 22 के अंतर्गत श्री दिनेष कुमार जैन के द्वारा हेल्थ इंष्योरेंस कंपनी चोलामण्डलम एम.एस जनरल इंष्योरेंस कंपनी के विरूद्ध बीमा प्राप्त करने हेतु दावा प्रस्तुत किया था, जिसमें लोकोपयोगी की लोक अदालत द्वारा आवेदक को चोलामण्डलम एम.एस जनरल इंष्योरेंस कंपनी से रूपये 1 लाख 30 हजार एवं श्रीमती लता तिवारी ने हेल्थ केयर इंष्योरेंस कंपनी के विरूद्ध बीमा राषि प्राप्त करने हेतु दावा प्रस्तुत किया था जिसे स्वीकार करते हुये 98 हजार 32 रूपये की बीमा धनराषि उक्त बीमा कंपनी द्वारा आवेदक को दिलाये जाने का आदेष पारित किया है।
उक्त खण्डपीठ में लोकोपयोगी सेवाओं की लोक अदालत के अध्यक्ष जिला न्यायाधीष श्री उमाषंकर अग्रवाल, मुख्य स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अधिकारी श्री संजय मिश्रा एवं लोक निर्माण विभाग के अधिकारी श्री गोपाल गुप्ता के द्वारा उक्त अवार्ड पारित किया गया।
श्री दिनेष कुमार जैन के द्वारा यह बताया गया कि उसने उपरोक्त बीमा कंपनी से स्वास्थ्य बीमा करवाया था, बीमा अवधि के दौरान उसके पैर में वैरीकोस वैन की बीमारी हो गयी थी इस कारण उसने चोलामण्डलम कंपनी के द्वारा नामित चिकित्सालय मेट्रो हाॅस्पिटल जबलपुर में आॅपरेषन कराया था। चिकित्सक का व्यय बीमा कंपनी के द्वारा अनुमोदित किया गया किंतु बाद में बीमा कंपनी इलाज का खर्च देने से मुकर गयी और यह असत्य आक्षेप लगाया कि बीमित ने फार्म भरते समय सही जानकारी नहीं दी थी। उसने बीमा कंपनी से कई बार पत्राचार किया किंतु बीमा कंपनी इलाज का खर्च देने तैयार नहीं हुयी और उसका क्लेम निरस्त कर दिया।
इसी प्रकार श्रीमती लता तिवारी ने केयर हेल्थ इंष्योरेंस कंपनी में स्वास्थ्य बीमा करवाया था। उनके पुत्र श्री प्रणय तिवारी द्वारा यह बताया गया कि उनकी मां को यूटीआई की षिकायत होने से चिकित्सालय में भर्ती होना पड़ा और इलाज में बहुत अधिक राषि व्यय करना पड़ी । जब उनके द्वारा बीमा कंपनी के समक्ष इलाज के खर्च हेतु अपना दावा प्रस्तुत किया तो उनका दावा भी इस आधार पर निरस्त किया गया कि पाॅलिसी लेते समय उनके द्वारा कंपनी को सही जानकारी नहीं दी थी।
आवेदकगणों का यह कहना है कि उसे जानकारी प्राप्त होने पर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण जबलपुर में सम्पर्क किया तथा सलाह मिलने पर उसने उक्त प्राधिकरण के समक्ष लोकोपयोगी सेवाओं के लिए स्थायी लोक अदालत के समक्ष स्वयं आवेदन पत्र समस्त इलाज एवं बीमा पाॅलिसी के दस्तावेजों के साथ प्रस्तुत किया। अनावेदकगण के उपस्थित होने पर सुलह चर्चा की गयी किंतु बीमा कंपनी के द्वारा आवेदक का दावा मानने से इंकार किया जिसके उपरांत उभयपक्षों के द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों के आधार पर लोक अदालत के द्वारा उसका आवेदन पत्र स्वीकार किया गया जिसके फलस्वरूप उसे बीमाधन दिलवाया गया।
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव उमाषंकर अग्रवाल के द्वारा लोकोपयोगी सेवाओं के लिए स्थायी लोक अदालत के संबंध में यह जानकारी दी गयी कि जो सेवायें किसी संस्था के द्वारा आम नागरिकों को प्रदान की जाती है उनके संबंध में दोनों पक्षों के मध्य कोई विवाद होता है तो उसका निराकरण उक्त लोक अदालत में किया जाता है। प्रमुख रूप से वायु, जल एवं सड़क मार्ग से यात्रियों अथवा माल के परिवहन/ट्रांसपोर्ट सेवा, टेलीफोन एवं पोस्टल सेवा , विद्युत एवं जल आपूर्ति सेवा सार्वजनिक संरक्षण या स्वच्छता की प्रणाली , अस्पताल या डिस्पेंसरी सेवा , बीमा सेवा, आवासी और संपदा या बैंकिंग एवं वित सेवायें उक्त लोकोपयोगी स्थायी लोक अदालत के अंतर्गत निराकरण योग्य है। उक्त लोक अदालत के आदेष या अवार्ड की कोई अपील नहीं होती किंतु परिवेदित पक्ष माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर कर सकता है। उक्त आदालत में आवेदन प्रस्तुति हेतु न तो न्याय शुल्क लगता है और न ही कोई शुल्क देना पड़ता है। आवेदक स्वयं आकर भी अपना मामला प्रस्तुत कर सकता है।
सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के द्वारा आम नागरिकों से अनुरोध किया है कि वे उक्त स्थायी लोक अदालत के समक्ष अपने मामलों को प्रस्तुत करे जिससे उन्हें सस्ता एवं सुलभ न्याय प्राप्त हो सके।