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उपनयन संस्कार के माध्यम से चारों वर्णों के बटुक बंधे एक सूत्र में…

हिन्दू धर्म मे सामाजिक समरसता की सार्थक पहल...

◆ VILOK PATHAK

जबलपुर आदि काल से सनातन धर्म मे संस्कारों का अपना महत्व है, जन्म से लेकर मृत्यु तक व्यक्ति को जीवन मे सोलह संस्कार से होकर गुजरना पड़ता है । इसी में से एक संस्कार है , उपनयन संस्कार यानी यज्ञोपवीत, या बरुआ, इसे जनेउ संस्कार भी कहते हैं । और ये संस्कार चारों वर्णों में किये जाते थे । कालांतर में देश पर शाशन करने वाली सनातन विरोधी ताकतों ने असमानता को लेकर आपस मे बरगलाया । जिसके फलस्वरूप उपनयन संस्कार केवल ब्राम्हणों तक ही सीमित रह गया था ।

इसको देखते हुए जिलहरी घाट स्थित कुशावरतेश्वर मंदिर में महाराष्ट्र ब्रह्मबृन्द समाज द्वारा आधा सैकड़ा से अधिक चारों वर्णों से आए बटुकों का यग्योपवित संस्कार किया गया । आयोजन समिति के अनंत डीके, मनोज कुशवाहा, विलोक पाठक ने बताया कि पुरातन काल से यह व्यवस्था रही है कि सनातन परंपरा में चारों वर्ण एक साथ व्यवस्थित रूप से रहते थे, एवं जीवन में होने वाले 16 संस्कारों को चारों वर्णों में लागू किया जाता था । मुगलकाल और अंग्रेजों के शासन के समय सनातनी परंपरा को तोड़ने कई संस्कारों को विलोपित किया गया । इसी के चलते केवल कुछ वर्ण यगोपवित धरण करते रहे हैं । इसी परंपरा को सुधारते हुए महाराष्ट्र ब्रह्म वृंद समाज ने उपनयन संस्कार का आयोजन किया, जिसमें सनातनी परंपरा के चारों वर्ण शामिल हुए इसमें बटुको को दीक्षित कर उन्हें जनेऊ धारण कराया गया । इस कार्यक्रम में क्षोर कर्म के पश्चात स्नान मंत्रोचार हवन सहित अन्य कर्मकांड आयोजित किए गए । आयोजन समिति के अनुसार उपनयन के बाद मां नर्मदा एवं भोलेनाथ का पूजन एवं वंदन किया गया । तत्पश्चात भंडारे का आयोजन किया गया जिसमें बटुकों के साथ-साथ सभी सनातनी लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया । इस अवसर पर अतिथि के रूप में समाजसेवी विशाल दत्त, राममूर्ति मिश्रा , राजेश जैन CA, सामाजिक समरसता संगठन के संदीप जैन ,सीताराम सेन नीरज जैन, महाराष्ट्र शिक्षण मंडल के पदाधिकारियों सहित बड़ी संख्या में मात्रशक्तियों की उपस्थिति रही ।

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