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देश धर्म और संस्‍कृति रक्षा के लिए बलिदान देने वाले गोंड शासकों को इतिहास में वह स्‍थान नहीं मिला जिसके वे हकदार थे : श्री लक्ष्‍मण सिंह मरकाम

राजा शंकर शाह–कुंवर रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस की पूर्व संध्‍या पर आयोजित व्‍याख्‍यान माला

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THE NI / जबलपुर राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह ऐसे गोंड शासक थे जिन्‍होनें देश, धर्म और संस्‍कृति की रक्षा करते हुये अपने प्राणों का बलिदान कर दिया, लेकिन अंग्रेजों के सामने सिर नहीं झुकाया। खेद का विषय है कि उन जैसे गोंडशासकों और स्‍वतंत्रता संग्राम के नायकों को इतिहासकारों ने किताबों में वह स्‍थान नहीं दिया जिसके कि वे हकदार थे।

इस आशय के विचार मुख्‍यमंत्री कार्यालय के अतिरिक्‍त सचिव श्री लक्ष्‍मण सिंह मरकाम ने आज यहां रानी दुर्गावती सेवा स्‍मृति न्‍यास द्वारा 1857 के स्‍वतंत्रता संग्राम के नायक और गोंडवाना साम्राज्‍य के अंतिम शासक राजा शंकर शाह एवं उनके सुपुत्र कुंवर रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस की पूर्व संध्‍या पर आयोजित हुतात्‍मा व्‍याख्‍यानमाला में मुख्‍य वक्‍ता के रूप में व्‍यक्‍त किये। पद्मश्री से संम्‍मानित श्री अर्जुन सिंह धुर्वे के मुख्‍य अतिथ्‍य में आयोजित इस व्‍याख्‍यानमाला के विशिष्‍ट अतिथि डॉ. प्रदीप दुबे थे। व्‍याख्‍यान माला की अध्‍यक्षता आयोजन समिति के अध्‍यक्ष आसाडूलाल उइके ने की।

अपने सारगर्भित व्‍याख्‍यान में श्री लक्ष्‍मण सिंह मरकाम ने कहा कि राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह के आजादी में योगदान और बलिदान को समझने के लिये भारत के इतिहास की व्‍यापक पृष्‍ठभूमि को जानना जरूरी है। राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह ने 1857 के पहले सन् 1842 और 1818 में भी अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह में शामिल हुये थे।

श्री मरकाम ने इस मौके पर कहा कि राजा शंकर शाह और उनके सुपुत्र कुँवर रघुनाथ शाह को 1857 के विद्रोह का नेतृत्‍व करने पर अंग्रेजो द्वारा तोप से उड़ाने को दी गई सजा के पूर्व उन्‍हें धर्म बदलने की और माफी मांगने के लिये कड़ी प्रताड़ना दी गई थी। लेकिन उन्‍होनें वीरता का परिचय देते हुये मृत्‍यु की सजा को स्‍वीकार किया। श्री मरकाम ने कहा कि राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह मॉं काली के परम उपासक और नर्मदा भक्‍त थे। राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह को दी गई फॉंसी की सजा को अंग्रेजों ने विद्रोह की अशंका को देखते हुये तोप से उड़ाने की सजा में तब्दील कर दिया था।

इस अवसर पर श्री प्रदीप दुबे ने गोंड राजाओं के प्रजा और प्रकृति प्रेम पर प्रकाश डालते हुए कहा कि राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह के बलिदान ने प्रदेश के जनमानस को स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए जागृत किया था। गोंड राजा अपनी प्रजा का पालन पोषण संतान के रूप में करते थे। साथ ही पर्यावरण संरक्षण का भी ख्याल रखते थे। आधुनिक शिक्षा व्यवस्था से गायब गोंड साम्राज्य के वृहद इतिहास को देश का दुर्भाग्य बताते हुए उन्होंने कहा कि इस देश में चमड़े की मुद्राओं से शासन करने वाले शाहों बादशाहों का इतिहास पढ़ाया जाता है जबकि स्वर्ण मुद्राएं प्रचलित कर वैभवशाली साम्राज्य को परिभाषित करने वाले गोंड साम्राज्य राजाओं की अवहेलना की जाती है। व्‍याख्‍यान माला को मुख्‍य अतिथि पद्मश्री से सम्‍मानित श्री अर्जुन सिंह धुर्वे ने भी संबोधित किया।

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