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सावधान : काढ़े का सेवन तो करें पर मात्रा का ध्यान रखें, इम्युनिटी बढ़ाने वाली चीजों की गरम तासीर से हो सकती है समस्या

इन दिनों कोरोना से बचाव के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने पर सबका जोर है। गिलोय, लौंग, अदरक, लहसुन, दालचीनी, कालीमिर्च का उपयोग बढ़ा दिया गया है। बेशक यह सभी चीजें हमारे शरीर के लिए लाभकारी हैं, लेकिन दूसरी तरफ इनका ओवरडोज घातक हो सकता है।

रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए उपयोग में लाई जा रही सभी औषधियों की तासीर गरम है। शरीर में गर्मी अधिक होने से पित्त की वृद्धि हो सकती है, जो सबसे पहले हमारी पाचन क्रिया को बाधित कर देगी। कालीमिर्च का अधिक सेवन करने से शरीर में कफ की मात्रा कम हो जाती है। कफ जलीय अंश है। जल का अंश शरीर में कम होने पर बदन में दर्द की शिकायत हो जाएगी और इससे कई रोग घेर लेते हैं। लौंग में  तीखापन होता है। इस तीखेपन के कारण ही लार ग्रंथियों से होने वाला स्राव बढ़ जाता है। इसका सीधा असर पाचन क्रिया पर पड़ता है। दालचीनी में हेपेटॉक्सिन होता है, जिसकी अधिक मात्रा हमारे लिवर पर दुष्प्रभाव डालती है। कुछ ऐसी ही प्रक्रिया गिलोय, लहसुन आदि के सेवन से होती है। शरीर में इनकी अधिकता आहार नली, लिवर, किडनी आदि अंगों पर दुष्प्रभाव डालती हैं।

आयुष मंत्रालय के दिशा निर्देशों का करें पालन
आयुर्वेदाचार्य डॉ. शांतनु मिश्र ने बताया कि इन दिनों लोगों का सबसे अधिक जोर आयुष काढ़ा पर है। लोग चौबीस घंटे में तीन-तीन, चार-चार बार काढ़ा का उपयोग कर रहे हैं। ऐसा भूल कर भी नहीं करना चाहिए। आयुष मंत्रालय ने विशेषज्ञों से विमर्श के बाद काढ़ा का एक फार्मूला तैयार किया है। यही फार्मूला देश की चुनिंदा कंपनियों को दिया गया है। एक दिन में एक कप काढ़ा पर्याप्त है। साथ ही चार कप काढ़ा तैयार करने के लिए एक टी-स्पून चूर्ण पर्याप्त है। काढ़ा बनाने का फार्मूला किन-किन कंपनियों को दिया गया है इसका विवरण भी आयुष मंत्रालय की वेवसाइट पर है।

यू-ट्यूब का फार्मूला अपनाने से बचें
वैद्य महेश मिश्र कहते हैं यू-ट्यूब पर दिखाए जा रहे फार्मूलों से बचने की जरूरत है। यू-ट्यूब के फार्मूलों ने 50 प्रतिशत से अधिक लोगों को अनावश्यक रोगी बना दिया है। भयग्रस्त कर दिया है। उदाहरण के तौर पर एक वीडियो में बताया गया है कि पांच-छह जावा लहसुन रोज चबा कर खाएं तो यूरिक एसिड की समस्या समाप्त हो जाएगी। वास्तविकता यह कि इतनी मात्रा में रोजाना लहसुन के उपयोग से पेट में जलन होने लगेगी। इससे अल्सर आदि कई रोग हो सकते हैं।

टॉक्सिन की खान बनता जा रहा शरीर
आईएमए के अध्यक्ष डॉ. आलोक भारद्वाज बताते हैं कि हमारी वर्तमान जीवन शैली के कारण हमारा शरीर टॉक्सिन की खान बनता जा रहा है। शरीर से टॉक्सिन  निकलने के तीन श्रोत मल, मूत्र और पसीना है। एसी में रहने से पसीना कम होता है। बार-बार लघुशंका से बचने के लिए लोग पानी कम पीते हैं। अव्यवस्थित खान-पान के कारण मलत्याग भी सही नहीं हो पाता। ऐसे में हमारा शरीर डी-टॉक्सिफाइ नहीं हो पाता। इससे कई रोगों से शरीर ग्रस्त होता जाता है।

आयुर्वेद में ऋतु अनुकूल भोजन की है व्यवस्था
बीएचयू के डॉ. केएन. द्विवेदी कहते हैं आमतौर पर एलोपैथ के चिकित्सक रोगी को सब कुछ खाने की सलाह देते हैं लेकिन हमारा पेट कचरे का ड्रम नहीं है कि जो चाहा डाल दिया। हमारे यहां आयुर्वेद में खान पान की तय व्यवस्था है। ऋतु और काल के अनुरूप भोजन की सलाह दी गई है।

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