शरद पूर्णिमा पर पंचांग भेद, शरद पूर्णिमा को सुबह करें स्नान-दान और रात को चंद्रमा की रोशनी में रखें खीर
पं. नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री 9993652408
धर्म ग्रंथों में शरद ऋतु में आने वाली पूर्णिमा बहुत खास मानी गई है, इस तिथि पर चंद्रमा की रोशनी में औषधीय गुण आ जाते हैं। इसलिए इस दिन चंद्रमा की चांदनी में खीर रखने और उसे अगले दिन प्रसाद के तौर पर खाने की परंपरा है। इस बार पंचांग भेद होने से शरद पूर्णिमा की तारीख को लेकर देश में कई जगह मतभेद है। कुछ कैलेंडर में 19 और कुछ पंचांग के मुताबिक 20 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा पर्व मनाया जाएगा।
ज्योतिषाचार्य का मत: शरद पूर्णिमा 20 को
ज्योतिषाचार्य पं. नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री बताते हैं कि जब अश्विन महीने की पूर्णिमा दो दिन हो तो अगले दिन शरद पूर्णिमा उत्सव मनाना चाहिए। ज्योतिषाचार्य पं. नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री का कहना है कि तिथि भेद वाली स्थिति में जब पूर्णिमा और प्रतिपदा एक ही दिन हो तब शरद पूर्णिमा पर्व मनाना चाहिए, व्रत और पर्वों की तिथि तय करने वाले ग्रंथ निर्णय सिंधु में भी ये ही लिखा है।
पंडित नरेन्द्र कृष्ण जी के अनुसार पूर्णिमा तिथि 19 अक्टूबर, मंगलवार को शाम 6.45 से शुरू होगी और बुधवार की शाम 7.37 तक रहेगी। इसलिए अश्विन महीने का शरद पूर्णिमा पर्व 20 अक्टूबर को मनाया जाना चाहिए। इस दिन सुबह स्नान-दान और पूजा-पाठ किया जाएगा और रात को चंद्रमा की रोशनी में खीर रखी जाएगी।
मान्यता: शरद पूर्णिमा पर ही बनता था सोमरस
ज्योतिषाचार्य पं. नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने बताया कि शरद पूर्णिमा पर औषधियों की ताकत और बढ़ जाती है, मान्यता है कि इस रात चंद्रमा की रोशनी में ही सोमलता नाम की औषधि का अर्क निकालकर रस बनाया जाता था जिसे सोमरस कहते हैं। इसी रस को देवता पीते थे, जिससे अमृत तत्व और देवताओं की शक्ति बढ़ती थी। ये भी कहा जाता है कि लंकापति रावण शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की किरणों को अपनी नाभि में ग्रहण करता था। ऐसा करने से उसे पुनर्योवन शक्ति मिलती थी, यानी उसकी ताकत और बढ़ जाती थी।