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उप राष्ट्रपति श्री धनखड़ ने अमर शहीद शंकर शाह-रघुनाथ शाह की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की

उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़, राज्यपाल श्री मंगुभाई पटेल और मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने देश और धर्म की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वाले जनजातीय नायक अमर शहीद राजा शंकरशाह और उनके पुत्र कुँवर रघुनाथ शाह के 165वें बलिदान दिवस पर आज जबलपुर में उनकी प्रतिमा पर पुष्प-चक्र अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। उन्होंने आजादी के अमृत महोत्सव पर गोंडवाना साम्राज्य के राजा शंकरशाह एवं कुँवर रघुनाथ शाह की बलिदान गाथा का स्मरण किया। गोंडवाना साम्राज्य के राज परिवार को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भारत के रजवाड़ों में प्रथम बलिदानी होने का गौरव हासिल है।

केन्द्रीय इस्पात एवं ग्रामीण विकास राज्य मंत्री श्री फग्गन सिंह कुलस्ते, प्रदेश के लोक निर्माण, कुटीर एवं ग्रामोद्योग मंत्री एवं जबलपुर जिले के प्रभारी मंत्री श्री गोपाल भार्गव, वन मंत्री डॉ. कुँवर विजय शाह, जनजातीय कार्य एवं अनुसूचित जाति कल्याण मंत्री सुश्री मीना सिंह, खजुराहो सांसद श्री विष्णु दत्त शर्मा, सांसद श्री राकेश सिंह, राज्य सभा सांसद श्रीमती संपतिया उइके, विधायक सिहोरा श्रीमती नंदनी मरावी सहित जन-प्रतिनिधि उपस्थित रहे।

उप राष्ट्रपति श्री धनखड़, राज्यपाल श्री पटेल और मुख्यमंत्री श्री चौहान के जबलपुर के मालगोदाम चौक स्थित अमर शहीद राजा शंकरशाह और कुँवर रघुनाथ शाह की प्रतिमा स्थली पहुँचने पर परंपरागत जनजातीय बैगा नृत्य से स्वागत किया गया। उप राष्ट्रपति श्री धनखड़ ने डिंडौरी जिले से आये बैगा नर्तक दल के सदस्य दयाराम से बात की और बेहतर नृत्य के लिए शाबासी दी। उप राष्ट्रपति से बात कर नर्तक दल के सभी सदस्य खुशी से फूले नहीं समा रहे थे।

◆ कविताओं से लोगों में आजादी के लिए भरते थे जोश और उत्साह

राजा शंकरशाह और उनके पुत्र कुँवर रघुनाथ शाह ने आजादी की लड़ाई में देश के लिए उत्कृष्ट त्याग और बलिदान दिया। वे अंग्रेजी शासन की दमनकारी नीतियों के विरूद्ध अपने विचारों और कविताओं से लोगों में आजादी के लिए जोश और उत्साह भरते थे। उनकी कविताओं से अंग्रेजों के विरूद्ध विद्रोह की आग सुलग उठी। डिप्टी कमिश्नर ई. क्लार्क ने गुप्तचर की मदद से पिता-पुत्र को 14 सितम्बर 1857 की शाम 4 बजे बंदी बना लिया। अगले तीन दिन तक मुकदमें का नाटक करते हुए वीर सपूत राजा शंकरशाह एवं कुँवर रघुनाथ शाह को 18 सितम्बर 1857 को सुबह 11 बजे तोप के मुँह पर बाँध कर मृत्युदंड दे दिया गया

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