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जिला एवं सत्र न्यायालय में आयोजित नेशनल लोक अदालत में निराकृत हुए कुल 5199 प्रकरण, 47 करोड़ 99 लाख के अवार्ड हुए पारित

जबलपुर
माननीय न्यायमूर्ति श्री सुजय पाल , न्यायाधिपति उच्च न्यायालय मध्यप्रदेश एवं पोर्टफोलियो न्यायाधीश जिला जबलपुर के द्वारा दीप प्रज्वलित कर जिला न्यायालय जबलपुर में राष्ट्रीय लोक अदालत का शुभारंभ किया ।
माननीय प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीष महोदय श्री आलोक अवस्थी के मार्गदर्षन में जिला न्यायालय जबलपुर, तहसील न्यायालय सिहोरा एवं पाटन तथा कुटुम्ब न्यायालय जबलपुर में दिनांक 13 मई 2023, शनिवार को नेषनल लोक अदालत का आयोजन किया गया। जिला न्यायाधीष एवं जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव उमाषंकर अग्रवाल के अनुसार 5199 प्रकरणों का निराकरण करते हुए 479903343 का अवार्ड पारित हुआ। प्रकरणों के निराकरण के लिये कुल 59 खण्डपीठों का गठन किया जाकर न्यायालयों में लंबित 1802 प्रकरणों एवं 3397 प्रीलिटिगेषन प्रकरणों का निराकरण किया गया।
उक्त लोक अदालत में आपराधिक शमनीय प्रकृति के 237 प्रकरण, धारा 138 एन.आई.एक्ट के 138 प्रकरण, मोटर दुर्घटना क्षतिपूर्ति दावा के 1152 प्रकरण, सिविल मामलों के 45 प्रकरणों एवं अन्य 35 लंबित प्रकरणों का निराकरण किया गया।
इस लोक अदालत में धारा 138 एन.आई.एक्ट में कुल 23255817 रूपये के समझौता राषि के निर्णय किये गये, मोटर दुर्घटना क्षतिपूर्ति दावा के प्रकरणों में 394923223 रूपये के अवार्ड राषि पारित की गई। विद्युत के न्यायालयों में लंबित 113 प्रकरणों में 1418582 की राजस्व वसूली हुयी। इसी प्रकार बैंक रिकवरी के 8 प्रीलिटिगेषन प्रकरणों में निराकरण पष्चात 6034271 की समझौता राषि लोक अदालत में प्राप्त हुयी।

लोक अदालत की सफलता की कहानी

1. नेषनल लोक अदालत में खंडपीठ क्रमांक 7 के पीठासीन अधिकारी श्री उमाषंकर अग्रवाल (सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण जबलपुर) के समक्ष लोक उपयोगी सेवाओं की लोक अदालत के अंतर्गत हेल्थ बीमा से संबंधित मामले का त्वरित निराकरण किया गया। उक्त प्रकरण के तत्थयानुसार सोमपारू कोल पिता श्री के.आर कोल यषवंत नगर अधारताल जबलपुर म0प्र0 द्वारा 4 वर्ष पूर्व केयर हेल्थ इंष्यारेंस से बीमा कराया गया था। एन्जोप्लास्टी के उपरांत केयर हेल्थ इंष्योरेंस से आवेदक सोमपारू कोल ने इलाज के खर्चे की मांग करते हुए इलाज खर्च की राषि की मांग करते हुए दावा किया। इंष्योरेंस कंपनी के द्वारा यह कहते हुए कि दावाकर्ता को कोई बीमारी नहीं है यह कहकर दावा खारिज कर दिया था। आवेदक द्वारा विधिक सेवा प्राधिकरण जबलपुर में इससे संबंधित आवेदन दिया गया था जिसमें विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा केयर हेल्थ इंष्योरेंस बीमा कंपनी नोटिस जारी किया गया।
नोटिस प्राप्ति उपरांत इसमें हेल्थ इंष्योरेंस कंपनी के अधिवक्ता नेहा मिश्रा उपस्थित हुई एवं पक्षकार से चर्चा किए जाने के उपरांत बीमा कंपनी इलाज खर्च देने को तैयार हुई एवं प्रकरण प्रस्तुती के उपरांत दूसरी पेषी पर ही बीमा कंपनी के द्वारा दावाकर्ता को 2,04,511/- (दो लाख चार हजार पांच सौ ग्यारह रूपये) प्रदान की।

2. पक्षकार राधा बाई साहू के द्वारा अपने मकान के बटवारे को उसके बडे पुत्र राकेष साहू के द्वारा ना मानने के संबंध में विधिक सेवा प्राधिकरण के समक्ष आवेदन प्रस्तुत करते हुए अपना मामला न्यायालय के समक्ष लगाने हेतु अधिवक्ता की मांगी की किन्तु मामला पारिवारिक होने के कारण उक्त प्रकरण को प्रीलिटिगेषन मीडिएषन क्लीनिक के समक्ष रखा गया एवं संबंधित पक्षकारों को सूचना पत्र भेजे गए। पक्षकारों से चर्चा किए जाने के उपरांत मध्यस्थता की संभावना को देखते हुए उक्त प्रकरण को प्रषिक्षित मध्यस्थ सुश्री तबस्सुम खान को मध्यस्थता कार्यवाही हेतु भेजा गया। उक्त प्रकरण मध्यस्थ के द्वारा लोक अदालत के दिन सुनवाई करते हुए एवं पक्षकारों से विभिन्न बिंदुओं पर चर्चा करते हुए व पारिवारिक विवाद को आपसी सुलह से निपटाने हेतु मार्गदर्षन दिया जिसके फलस्वरूप उभय पक्षकार आपसी सहमति से प्रकरण के निराकरण हेतु राजी हुए एवं समझौता पत्र तैयार कर प्रीलिटिगेषन मीडिएषन क्लीनिक (जिला विधिक सेवा प्राधिकरण) के समक्ष रखा गया । उक्त प्रकरण में सुलह के माध्यम से अवार्ड पारित किया गया।

3. कुटुंब न्यायालय की खण्डपीठ क्रं. 49 प्रधान न्यायाधीष श्री काषीनाथ सिंह के न्यायालय में पति पत्नी द्वारा आपसी सहमति से तलाक/विवाह-विच्छेद का आवेदन प्रस्तुत किया था किंतु न्यायालय ने उक्त प्रकरण में मध्यस्थता की संभावना को देखते हुए मध्यस्थता कराई गई जिससे यह प्रकट हुआ कि पति पत्नी में बहुत तुच्छ प्रकृति के वाद-विवाद होते रहते थे और दोनों ही पक्षकार का अहम एक-दूसरे से टकराता था । उन्हें मध्यस्थ के द्वारा यह समझाईष दी गई कि पति पत्नी के बीच तुच्छ विवाद होना स्वाभाविक है तथा दोनों को एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए और पति पत्नी के बीच किसी भी प्रकार का स्वाभिमान एवं अहम् नहीं होना चाहिए क्योंकि ये दोनों विकार ही संबंधों को समाप्त करते है। उक्त समझाईष पर दोनों पक्षकार राजी खुषी उन्हें दांपत्य जीवन में पुर्नस्थापित हुए।

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