मां की निश्चल समझाईश बच्चे के लिए गुरु ज्ञान के बराबर : संत शिरोमणि आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी महाराज
जबलपुर दयोदय तीर्थ गौशाला में चौमासे में विराजमान आचार्य विद्यासागर ने अपने प्रवचन में बताया कि , मां अपने बच्चों को समझती है , जानती है अपनी सीख बच्चों तक पहुंचाती है नन्हे बच्चों को भी अच्छाई के साथ बुराई से सजग करती रहती है , माँ ख्याल रखती है कि दीपक की रोशनी से अंधकार दूर हो और उससे निकलने वाला धुआं उसे नुकसान ना करें बल्कि वातावरण को शुद्ध रखें यह सब बातें मां बच्चे के श्रेष्ठ विकास के लिए करती है समय समय पर भोजन और मीठा भी खिलाती है ताकि असमय बच्चा कुछ खाये नहीं परंतु बच्चे भी नटखट होते हैं , बच्चे ने कुछ खा लिया और वह मां ने देख लिया उसी समय बच्चे ने भी मां को देख लिया दोनों ने एक दूसरे को देखा पर बच्चा डर से मुंह बंद कर लिया माँ ने आंखें दिखाई और इशारे से निर्देशित किया बच्चे ने उसे थूक दिया, पता चला मिट्टी खाई थी। यह मां की निश्चल समझाइए बच्चे के लिए गुरु ज्ञान के बराबर थी इसके बाद बच्चे ने जीवन भर मिट्टी का त्याग कर दिया और आप सम्यक दर्शन सम्यक ज्ञान सम्यक चरित्र का ध्यान रखते हुए भी गलतियां बार-बार करते रहते हैं , बच्चा एक बार में समझ जाता है लेकिन हम जानकर हो कर भी नहीं समझते या समझना नही चाहते , हम प्रदूषण फैलाते रहते हैं शरीर मे मन मे वातावरण में , आपकी निगाह उसमें नहीं जाती आप उस स्तर में काम कर रहे हैं जहां संशोधन गौण हो जाते हैं और यही परेशानी का कारण होते हैं ।
आचार्य श्री ने बच्चों से कहा कि परीक्षा अवश्य होनी चाहिए लेकिन परीक्षा बोझ और तनाव का कारण नहीं होना चाहिए । दीपक हमें सिखाता है कि रात के अंधेरे को छोटा दीपक भी नष्ट कर देता है यह इस बात पर निर्भर करता है कि दीपक में कितना विश्वास है, बच्चे अपने शिक्षण काल को संशोधित करते चले, दूषित ना करें ज्ञान के साथ आरोग्य का भी ध्यान रखें और दूषित पदार्थों का सेवन शरीर पर प्रभाव डालता है, जो बचपन से ही मन मस्तिष्क को प्रभावित करता है।