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मन को मूल्यवान समझो तभी आनंद से जी पाओगे : मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज

जबलपुर/ कर्म क्षेत्र में पुरुषार्थ करने के लिए इंसान सदैव तत्पर रहता है लेकिन धर्म क्षेत्र में पुरुषार्थ करने के लिए इंसान तत्परता नहीं दिखाता, जो इस युक्ति पर विश्वास करते हैं कि *जो होना है वह तो होना ही है* वे लोग पुरुषार्थ नहीं करते अकर्मण्य हो जाते हैं, वे ऐसा मानने लगते हैं कि करने से क्या होगा जो होना है वह होकर रहेगा।
अपने मन को मूल्यवान समझोगे तभी आनंद से जी पाओगे,
अपने मन को चंचल मत बनाओ यदि आपका मन चंचल होगा तो आप धर्म सभा में कैसे बैठ पाओगे।
कहा जाता है कि *जहां जहां चरण पड़े संतन के जग तीरथ हो जाए* संतों का प्रभाव ही ऐसा है यदि उनके चरणों के अग्रभाग का गंदोदक जिस माथे तक नहीं पहुंचा वह मस्तक नहीं सिर्फ कपाल रह जाता है।

यदि हम अच्छे हैं तो सारा जग अच्छा है यदि हम बुरे हैं तो हमें सारा जग बुरा लगता है, हमारा नजरिया ही अच्छा बुरा तय करता है, सकारात्मक सोच दुनिया को अच्छा बनाती है।
धन दुनिया में बुरा नहीं है, श्रावक चाहे तो धन से बुरा काम करके दुर्गति कर ले वही श्रावक चाहे तो धन से मंदिर, धर्मशाला, गौशाला, स्कूल, चिकित्सा केंद्र बनाकर सद्गति के पात्र बन जाते हैं।
एक अमीर व्यक्ति संत की प्रेरणा पाकर हजारों गरीबो का भला कर सकता है , संत की प्रेरणा पाने अमीरों को संत के चरणों में आना चाहिए ताकि वे ज्ञान पा कर जनसेवा कर सकें।

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