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 ” मूल निवासी दिवस की आड़ में मिशनरियों का भारत पर निशाने का आरोप ” 

-डॉ. आनंद सिंह राणा, (प्रसिद्ध इतिहासकार एवं इतिहास संकलन समिति महाकौशल प्रांत से सम्बद्ध)

न्यूज़ इन्वेस्टिगेशन
फड़ापेन (बड़ा देव) ही महादेव हैं, वही ‘सत्यम् शिवम सुंदरम्’ के रुप में प्रकाशित होकर,भारत के मूल का शक्तिपुंज हैं। हम भगवान् बिरसा मुंडा के देश के हैं, वो हमारे पूर्वज हैं, इसलिए हम उनकी जयंती पर जनजाति गौरव दिवस मनाते हैं। अतः भारत में मूल निवासी दिवस मनाए जाने का कोई औचित्य नहीं है? ये तो भारत के विरुद्ध षड्यंत्र है। परंतु 9 अगस्त को मूल निवासी दिवस मनाए जाने के विश्व व्यापी षड्यंत्र का खुलासा अनिवार्य है।
भारत का हर निवासी है मूल निवासी और आत्मा है जनजाति,यही है सनातन की थाती, जिससे मिशनरियों की फटती है छाती। इसलिए है मिशनरियों के इशारे पर ग्लोबल फोर्सेज के सहारे मूल निवासी दिवस मनाए जाने का भारत में षड्यंत्र, जो है भारत को
विभाजित करने दुष्कर्म। सावधान! विश्व के शेष बचे हुए मूल निवासियों क्योंकि ईसाई मिशनरियां ग्लोबल फोर्सेज के साथ मिलकर संयुक्त राष्ट्र महासभा के सहारे मूल निवासी दिवस के नाम पर सबका समूल विनाश करने के लिए उद्यत हैं।
परंतु भारत का दुर्भाग्य देखिए कि यहाँ के तथाकथित सेक्यूलर जय भीम – जय मीम और वामी, ईसाई मिशनरियों के षडयंत्र में सम्मिलित होकर विश्व मूल निवासी दिवस मनाए जाने की पैरवी कर रहे हैं इसलिए ईसाई मिशनरियों के साथ ग्लोबल फोर्सेस का मूल दिवासी दिवस मनाए जाने के षड्यंत्र का खुलासा करना अनिवार्य हो जाता है।
गौरतलब है कि ईसाईयों ने प्रथम चरण में नरसंहार और द्वितीय चरण में सेवा की आड़ में विश्व के 85 देशों के मूल निवासियों का सफाया कर, ईसाई देश बना डाला और आधी दुनिया को चपेट लिया वहीं इस्लामियों ने तलवार की दम पर 58 मुस्लिम देश बना डाले। अब शेष दुनिया और विशेष कर भारत निशाने पर है।
ईसाई मिशनरियों ने ग्लोबल फोर्सेस के साथ मिलकर किस तरह आधी दुनिया से मूल निवासियों का हर तरह से सफाया किया और भारत में मूल निवासियों के नाम पर क्या षडयंत्र किया? यह समझने के लिए ईसाई मिशनरियों के कर्मों को समझना होगा तभी सबकी आखें खुलेंगी!इस संदर्भ में नोबेल पुरस्कार विजेता अफ्रीकी आर्कबिशप डेसमंड टुटू का कथन मार्गदर्शी है, उन्होंने ईसाई मिशनरियों पर तंज कसते हुए, कहा था,कि ‘जब मिशनरी अफ्रीका आए तो उनके पास बाइबिल थी और हमारे पास धरती।’ मिशनरी ने कहा, ‘हम सब प्रार्थना करें। हमने प्रार्थना की। आंखें खोलीं तो पाया कि हमारे हाथ में बाइबिल थी और भूमि उनके कब्जे में।(’When the missionaries came to Africa they had the Bible and we had the land. They said “Let us pray.” We closed our eyes. When we opened them we had the Bible and they had the land.)
वहीं केन्या के पहले प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति जोमो केन्याटा को 1914 में, ईसाई धर्म में बपतिस्मा दिया गया और उनका नाम जॉन पीटर रखा गया जिसे उन्होंने जॉनस्टोन में बदल दिया। बाद में उन्होंने 1938 में अपना नाम बदलकर जोमो रख लिया। उन्होंने अपना पहला नाम किकुयू शब्द “जलते हुए भाले” से लिया और अपना अंतिम नाम मसाई शब्द से लिया, जिसका अर्थ है मनका बेल्ट जिसे वे अक्सर पहनते थे।उन्होंने ईसाई मिशनरियों पर डेसमंड टुटू की तरह तंज कसते हुए कहा कि “जब मिशनरी आये, तो अफ्रीकियों के पास जमीन थी और मिशनरियों के पास बाइबिल थी । उन्होंने सिखाया कि आंखें बंद करके प्रार्थना कैसे की जाती है। जब हमने उन्हें खोला, तो उनके पास ज़मीन थी और हमारे पास बाइबिल थी। हमारे बच्चे अतीत के नायकों के बारे में सीख सकते हैं।”( When the Missionaries arrived, the Africans had the land and the Missionaries had the Bible. They taught how to pray with our eyes closed. When we opened them, they had the land and we had the Bible. Our children may learn about the heroes of the past.”)। अब ईसाई मिशनरियों के भारत में कुकृत्यों की दास्तान उजागर करना आवश्यक है।
उसके पूर्व संयुक्त राष्ट्र संघ और मिशनरियों के साथ भारत के तथाकथित सेक्यूलरों को सलाह है कि भारत में भगवान् बिरसा अवतरण दिवस 15 नवंबर को भारत में जनजाति गौरव दिवस के रुप मनाया जाता है इसलिए 9 अगस्त की जगह यदि 15 नवंबर को विश्व मूल निवासी दिवस मनाया जाए तो क्या उचित नहीं होगा? संयुक्त राष्ट्र महासभा से पूँछता है भारत। इतिहास गवाह है कि संपूर्ण विश्व में कोलंबस से लेकर यूरोपीय शक्तियों और ईसाई मिशनरियों ने औपनिवेशिक साम्राज्यवाद की स्थापना के लिए किस प्रकार से आदिवासियों के ज्ञान, विज्ञान और संस्कृति का विनाश किया है, परंतु भारत में पूर्ण रुप से सफल नहीं हो सके।विश्व आदिवासी /मूल निवासी दिवस ( International Day of the World’s Indigenous Peoples), आदिवासी आबादी के अधिकारों को बढ़ावा देने और उनकी सुरक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने दिसम्बर 1994 को प्रत्येक वर्ष 9 अगस्त को विश्व के आदिवासी /मूल निवासी लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जाने का निर्णय लिया परंतु भारत की जनजातियों के लिए यह विचार उचित नहीं है क्योंकि भारत की जनजातियां ज्ञान,विज्ञान पर्यावरण, आपदा प्रबंधन, कृषि और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध हैं। उन्हें सिखाने की नहीं वरन् संपूर्ण विश्व को उनसे सीखने की आवश्यकता है। भारत में जनजातीय सभ्यता और संस्कृति हिन्दू धर्म का अमरत्व है और हिंदुत्व की आत्मा है। ‘ॐ नमः शिवाय-जय बड़ा देव अर्थात फड़ापेन के आलोक में जनजातीय अवधारणा – जय सेवा. जय बड़ा देव.जोहार.सेवा जोहार -का मूल-कोयापुनेम (मानव धर्म और प्रकृति की शाश्वतता)में निहित है,जो” वसुधैव कुटुम्बकम् “के रुप में भारतीय संस्कृति में शिरोधार्य है। विश्व में भारत से ही जनजाति समाज का आरंभ हुआ और उनके हमारे आदि देव एक ही हैं, अर्थात् अद्वैत है। हमारा मूल एक ही है(इसलिए बाँटने की कोशिश की सफलीभूत नहीं होगी)। “शम्भू महादेव दूसरे शब्दों में शम्भू शेक(महादेव की 88 पीढ़ियों का उल्लेख मिलता है – प्रथम..शंभू-मूला, द्वितीय-शंभू-गौरा और अंतिम शंभू-पार्वती) ही हैं” शंभू मादाव (अपभ्रंश – महादेव)ही हैं। “गढ़ा – जबलपुर को महान् गोंडवाना काल से ‘लघु काशी वृंदावन’ के नाम भी जाना जाता है – क्योंकि शैव और वैष्णव परंपरा का सौम्य समाहार दृष्टिगोचर होता है – महान् कलचुरियों द्वारा स्थापित शिवालयों को महान् गोंडवाना साम्राज्य के महा प्रतापी राजाओं ने विशेष कर वीरांगना रानी दुर्गावती ने सजाया और संवारा -जनजाति संस्कृति हिंदुत्व का मूल है – अत: हिन्दू धर्म से जनजाति को पृथक से देखने और परिभाषित करने वाले भ्रष्ट और मानसिक दिवालियेपन के शिकार- ईसाई मिशनरीज,गजवा ए हिंद के पोषक और तथाकथित सेक्यूलर इसे जरुर पढ़ें और जबलपुर आकर इन शिवालयों के दर्शन करें साथ ही आशीर्वाद प्राप्त कर अपने ज्ञान चक्षु खोलें तथा हिन्दू धर्म से जनजातियों को पृथक से परिभाषित करने का कुत्सित षड्यंत्र बंद करें, क्योंकि जनजाति हिन्दुत्व का अमृत तत्व है और आत्मा है।
वसुधैव “जय सेवा.जय जोहार.सेवा जोहार -का मूल-कोयापुनेम (मानव धर्म और प्रकृति की शाश्वतता)में निहित है,जो” वसुधैव कुटुम्बकम् “के रुप में भारतीय संस्कृति का अमृत तत्व है। “शम्भू महादेव दूसरे शब्दों में शम्भू शेक(महादेव की 88 पीढ़ियों का उल्लेख मिलता है – प्रथम..शंभू-मूला, द्वितीय-शंभू-गौरा और अंतिम शंभू-पार्वती) ही हैं”। रामेश्वरम उप ज्योतिर्लिंग, जाबालिपुरम्..के दिव्य “भील श्रृंगार दर्शन ” अद्भुत और अद्वितीय है । वसुधैव कुटुम्बकम् के आलोक में धार्मिक सहिष्णुता का गुण धर्म सनातन धर्म के मूल में है, परंतु ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में इसकी अतिशयता अत्यधिक घातक सिद्ध हुई है। भारतवर्ष लंबे अर्से से सेवा की आड़ में मंतातरण, अत्याचार, अनाचार और विभिन्न प्रकार से शोषण का ईसाई मिशनरियों का केंद्र बिंदु बना हुआ है। मिशनरियों के दुष्कर्म और आतंक गोवा से प्रारंभ हुए। गोवा पर पुर्तगाली कब्जे के बाद पादरी जेवियर ने हिंदुओं का भयंकर उत्पीड़न किया। गोवा में ईसाई कानून 1561 में लागू हुए। हिंदू प्रतीक धारण करना भी अपराध था। तिलक लगाना और घर में तुलसी का पौधा रोपना भी मृत्युदंड का अपराध बना। ‘फ्रांसिस जेवियर: द मैन एंड हिज मिशन’ के अनुसार एक दिन में छह हजार लोगों के सिर काटने पर जेवियर ने प्रसन्नता व्यक्त की। एआर पिरोलकर ने ‘द गोवा इनक्वीजन’ में लिखा, ‘आरोपी के हाथ-पांव काटना, मोमबत्ती से शरीर जलाना, रीढ़ तोड़ना, गोमांस खिलाने जैसे अन्यान्य अमानवीय अत्याचार किए गए।’
बरतानिया सरकार ने सन् 1813 के चार्टर एक्ट से ईसाई मिशनरियों को प्रवेश के साथ भारत में हर प्रकार की छूट दे दी। तदुपरांत भारत में ईसाई मिशनरियों का मकड़जाल फलने-फूलने लगा। भारत में मंतातरण कराने वाली ईसाई मिशनरी योजनाबद्ध तरीके से सनातन धर्म और भारत की जड़ों को काटने का कार्य प्रारंभ किया।
प्रकारांतर से वंचितों और दलितों को पृथक परिभाषित कर हिन्दू धर्म में दरार पैदा की गई। ईसाई मिशनरियों द्वारा पृथक पृथक रास्तों से पृथक – पृथक तरीकों से हिंदुओं का तथाकथित धर्मांतरण कराया गया।कभी बलपूर्वक, छलपूर्वक तो कभी सेवा, स्वास्थ्य, शिक्षा नौकरी, चंगाई सभा और समानता की आड़ में मंतातरण कराया।लेकिन वर्तमान में वस्तुस्थिति यह है कि भारत में कैथोलिक चर्च के 6 कार्डिनल हैं, पर कोई दलित नहीं।30 आर्कबिशप में कोई दलित नहीं, 175 बिशप में केवल 9 दलित हैं, 822 मेजर सुपिरियर में 12 दलित हैं, 25000 कैथोलिक पादरियों में 1130 दलित ईसाई हैं। इतिहास में पहली बार भारत के कैथोलिक चर्च ने यह स्वीकार किया है कि जिस छुआछूत और जातिभेद के दंश से बचने को दलितों ने हिन्दू धर्म को त्यागा था, वे आज भी उसके शिकार हैं।दक्षिण अफ्रीका का एक विचारक कहता है “यूरोपियन देशों के पास चार तरह की सेना हैं थल सेना,जल सेना,वायु सेना और चर्च। वह सबसे पहले चर्च को भेजते हैं जो उनके लिए शिक्षा एवं सेवा के नाम पर जीत का वातावरण तैयार करती है और धीरे-धीरे वह समस्त प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा कर लेते हैं। चर्च और षड्यंत्रकारियों का मकड़जाल इतनी धूर्तता से अपना काम स्थानीय बौद्धिक वर्ग में करता है की वहाँ की संस्कृति कब नष्ट हो गयी पता ही नहीं चलता।” यह कितना भयावह है कि ईसाईयत का खेल खेलने के लिए विदेशों से हज़ारों करोड़ रुपया थोक के भाव भारत भेजा जाता है सिर्फ इतना ही नहीं , इनको धन की कमी न हो इसके लिए भारत में ही बैठे हिंदुत्व विरोधी और राष्ट्र के दुश्मन इनको अथाह धन उपलब्ध कराते हैं। धर्मान्तरण के लिए सबसे पहले निशाना बनाया जाता है गरीब दलित और आदिवासियों को जिनकी गरीबी और अशिक्षा को हथियार बना कर, धन का लालच देकर, बहला फुसलाकर कर हाथों में बाईबल और क्रॉस थमा दिया जाता है और उनको अपनी ही संस्कृति व धर्म का दुश्मन बना दिया जाता है, आप कह सकते हैं कि शनैः शनैः उनको मानसिक विकलांग बना दिया जाता है। इन सबके लिए ये ईसाई मिशनरी तरह तरह की पुस्तकों, प्रचार माध्यमों, फिल्मों कार्यक्रमों व चर्च में होने वाली नियमित बैठकों के साथ – साथ स्थानीय प्रभावशाली व्यक्तियों का सहारा लेते हैं और नितांत योजनाबद्ध तरीके से लोगों के मस्तिष्क में उनके ही गौरव पूर्ण इतिहास, देवी देवताओं तीर्थों और महापुरुषों के प्रति विष भरने के लिये प्रशिक्षण सत्र चलाये जाते हैं और वो इस कार्य में सफल भी रहे हैं।
ईसाई धर्मांतरण अंग्रेजी राज के समय से ही राष्ट्रीय चिंता का विषय है। मिशनरी संगठन उपचार, शिक्षा आदि सेवाओं के बदले गरीबों का धर्मांतरण कराते हैं। महात्मा गांधी ने 18 जुलाई, 1936 के हरिजन में लिखा था, ‘आप पुरस्कार के रूप में चाहते हैं कि आपके मरीज ईसाई बन जाएं।’ डॉ. भीमराव आंबेडकर आंबेडकर भी इसी मत के थे। उन्होंने लिखा था कि, ‘गांधी के तर्क से वह सहमत हैं, लेकिन उन्हें मिशनरियों से स्पष्ट कह देना चाहिए था कि अपना काम रोक दो।
महाकौशल प्रांत भारत का हृदय स्थल है, यहाँ की जनजातीय संस्कृति हिंदुत्व की धड़कन है। इसलिए ईसाई मिशनरियों ने महाकौशल प्रांत में मुख्य रुप से जनजातियों को अपना निशाना बनाया है। ईसाईयत के अनुसार गाॅड(ईश्वर) का पहला बेटा स्वर्ग दूत लूसीफर ही शैतान बन गया था वह वेरियर एल्विन के रुप में डिंडौरी पहुँचा। वेरियर एल्विन ने 13 वर्षीय बैगा बालिका कौशी बाई के साथ बाल विवाह कर उसका सर्वनाश कर दिया। रक्त बीज वेरियर एल्विन ने डिंडौरी में यौन शोषण और मंतातरण के विषैले बीज बोए। ये बीज फट रहे हैं और महाकौशल सहित संपूर्ण भारत में सैकड़ों कौशी देवी शिकार हो रही हैं।जिसका भयावह रुप मार्च 2023 में डिंडौरी के जुनवानी मिशनरी स्कूल में देखने को मिला।यहाँ 8 नाबालिग जनजातीय बालिकाओं का यौन शोषण शिक्षक खेमचंद बिरको और पादरी सनी फादर ने किया जिसमें वार्डन सविता एक्का सहयोगी रही। पहले मामले को दबाने का प्रयास किया गया परंतु एक दैनिक समाचार पत्र मुखर हुआ और तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तत्परता के साथ सख्त कार्रवाई की। फलस्वरुप पाक्सो एक्ट सहित अन्य धाराओं में आपराधिक प्रकरण दर्ज हुए। सन् 1937 से स्थापित इस स्कूल में सेवा और शिक्षा की आड़ में बदस्तूर यौन शोषण, मंतातरण जारी रहा। विदेशी फंडिंग के साथ राज्य से भी अनुदान मिलता रहा।अति तो तब हुई जब बिशप ने कहा कि “म. प्र. को कैथोलिक स्टेट बनाना है।” म. प्र सरकार ने नकेल डाल दी है और मिशनरियों का यह कहना बंद हो गया है कि “सरकार कोई भी हो सिस्टम तो हमारा है।” बिशप और पादरियों द्वारा यौन उत्पीड़न की कहानी सिस्टर लूसी कलाप्पुरा की आत्मकथा ‘कार्ताविन्ते नामाथिल’ (ईश्वर के नाम पर) में भी पढ़ी जा सकती है। इसे पढ़कर स्पष्ट होता है कि यौन शोषण और उत्पीड़न चर्च के लिए कोई नया शब्द नहीं है।
जबलपुर में निवासरत् भारत के सर्वाधिक कुख्यात पूर्व बिशप पी. सी. सिंह के पद में रहते हुए देश भर में 99 आपराधिक मामले दर्ज हुए हैं , फिर भी
बिशप पीसी सिंह जमानत पर रिहा हैं। डाॅनों के डाॅन पी सी सिंह पर ज्यादातर मामले अमानत में ख्यानत के हैं। इनमें छेड़छाड़, अवैध वसूली, फर्जी दस्तावेज बनाने सहित अन्य प्रकरण भी शामिल हैं। यह भी आरोप लगाए गए थे कि बिशप पीसी सिंह ने अपने सहयोगी पीटर बलदेव से मिलीभगत कर मिर्जापुर (उप्र) में 10 करोड़ रपये कीमत की जमीन बेच दी थी।
इन प्रदेशों में दर्ज हैं मामले
दिल्ली में तीन, उत्तर प्रदेश में 42, राजस्थान में 24, झारखंड में तीन, मध्य प्रदेश में चार, छत्तीसगढ़ में तीन, महाराष्ट्र में 11, पंजाब में छह, पश्चिम बंगाल में एक, हरियाणा में एक सहित अन्य एक मिलाकर कुल 99 आपराधिक प्रकरण दर्ज हैं।उल्लेखनीय है कि ईओडब्लयू जबलपुर की टीम ने आठ सितंबर, 2022 को पूर्व बिशप पीसी सिंह के नेपियर टाउन स्थित कार्यालय व घर पर दबिश दी थी। दबिश के दौरान 80 लाख का सोना, एक करोड़ 65 लाख रुपये नकद, 48 बैंक खाते, 18352 यूएस डालर, 118 पांउड, नौ लग्जरी गाडिय़ां, 17 संपत्तियों के दस्तावेज मिले थे। दबिश के दौरान पूर्व बिशप देश के बाहर था। ईओडब्ल्यू ने उसे नागपुर एयरपोर्ट से 12 सितंबर को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया था। था। ईओडब्लयू ने पूछताछ के लिए पूर्व बिशप को चार दिन के रिमांड पर लिया था। रिमांड के दौरान उसने 10 एफडी सहित 174 बैंक खातों की जानकारी दी थी। आरोप है कि पूर्व बिशप ने मिशन कंपाउंड स्थित बेशकीमती जमीन खुद के नाम आधे दामों में खरीदी थी। आरोप है कि पीसी सिंह ने बिशप रहते हुए जमीन बेची और क्रेता के तौर पर स्वंय खरीद ली। उसके विरुद्ध देशभर के अलग-अलग राज्यों में 80 मामले दर्ज है। आरोपित ने बिना अनुमति फर्जी तरीके से संस्था का रजिस्टे्रशन कराया था। विशप व उनके परिवार के सदस्यों के नाम पर बैंक में साढ़े छह करोड़ रूपये पाये गये थे। संस्था के स्कूलों के नाम पर खुद के लिए वाहन खरीदे, बैंक खाते से छह करोड रूपये ट्रांसफर करने, नियम विरुद्ध तरीके से पत्नि व बेटे की नियुक्ति सहित अन्य लगे हैं।अब ईडी ने छापा मारा है,जैकब भी घेरे में आ गए हैं। दोनों के इंग्लैंड से फंडिंग संबंधों का खुलासा हुआ है। वहीं दूसरी ओर जबलपुर में ईसाई मिशनरीज की एक और करतूत सामने आई है। मेथोडिस्ट चर्च आफ इंडिया के नाम पर 6 एकड़ रिहायशी इलाके में निवासार्थ दी गई थी। फादर मनीष गिडियन सहित अन्य ने इस जमीन को खुर्द- बुर्द कर आवासीय भूमि के पट्टे की आड़ में होटल, हास्पिटल व दुकानों को विकसित कर, दुरुपयोग किया। यह कितना शर्मनाक और चार सौ बीसी है। अरबों रुपये की संपत्ति का दुरुपयोग है।
मध्यप्रदेश के दमोह में पुलिस ने ईसाई मतांतरण का एक बड़ा षड्यंत्र विफल किया है । जांच में यह जानकारी भी सामने आई है कि दमोह के ‘यीशु भवन’ में क्रिसमस के समय 500 लोगों का मतांतरण कराने की योजना बनाई गई थी, हालांकि अब इससे जुड़े सभी लोग गिरफ्तार भी किए जा चुके हैं। दमोह जिला के यीशु भवन को इन ईसाई मिशनरी समूह ने अवैध मतांतरण का ‘अड्डा’ बना रखा था, जिसमें प्रमुख रूप से केरल की ईसाई संस्था सम्मिलित थी, इस संस्था से जुड़े 8 लोगों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज की गई थी और 2 लोगों को गिरफ्तार भी किया जा चुका है।
मतांतरण के इस ‘अवैध अड्डे’ में ईसाई मिशनरी हिंदु महिलाओं को पानी में डुबकी लगवाते है। उनका बपतिस्मा करने की प्रक्रिया के नाम पर उनके सिंदूर-बिंदी, चूड़ी और मंगलसूत्र निकलवाया जाता है एवं अंततः घर में स्थापित देवी-देवताओं के फोटो को पानी में विसर्जित करवाया जाता है। उन्हें पैसे और अन्य सुविधाओं का लालच दे कर ईसाई बनाया जाता था। यह लोग क्रिसमस पर 500 से ज्यादा हिन्दुओं का मतांतरण करने का षड्यंत्र रच रहे थे,जिसे निष्फल कर दिया गया। महाकौशल प्रांत के सागर जिले में एक मिशनरी स्कूल की जीव विज्ञान प्रयोगशाला में मानव भ्रूण मिलने से भयावह स्थिति बन गई। शिकायत मिलने के बाद राज्य बाल आयोग जांच करने स्कूल पहुंचा। प्रकरण जिले के बीना में स्थित मिशनरी हायर सेकंडरी स्कूल निर्मल ज्योति का है। राज्य बाल संरक्षण आयोग की दो सदस्यीय टीम बीना पहुंची। टीम में सम्मिलित आयोग सदस्य ओंकार सिंह व डॉ. निवेदिता शर्मा ने स्कूल का निरीक्षण किया। जहां पर स्कूल की जीव विज्ञान प्रयोगशाला में एक भ्रूण मिला। भ्रूण कहां से और कब लैब में आया इसको लेकर स्कूल प्रबंधन कोई जवाब नहीं दे पाया । मौके पर मौजूद प्राचार्या सिस्टर ग्रेस का कहना था कि वह कुछ समय पहले ही यहां पदस्थ हुई हैं, पूर्व में कोई लाया होगा, लेकिन इसकी जानकारी नहीं है। मानव भ्रूण को
को लेकर पहले तो प्लास्टिक का होने की बात की गई। लेकिन जब आयोग सदस्य डॉ. निवेदिता शर्मा ने पूछा कि इसे प्रिजर्व करके क्यों रखा गया है ? प्लास्टिक का है तो बाकी जीवों की तरह इसे भी बाहर रखो, तो प्रबंधन कोई जवाब नहीं दे सका। आयोग सदस्यों ने भ्रूण को जब्त कर मौके पर मौजूद पुलिस को जांच कराने के लिए सौंपा है। फोरेंसिक जाँच में मानव भ्रूण होने की पुष्टि हुई है। वहीं शिकायतकर्ता छात्र के बयान लेने के बाद आयोग सदस्य ने बीआरसी को स्कूल प्रबंधन के खिलाफ धर्म विशेष की प्रार्थना कराने के आरोप में एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए हैं।
स्कूल प्रबंधन ने 178 बच्चों की फीस में छूट बताई, जबकि फाइल में 1 नाम मिला। स्कूल के आय-व्यय, मान्यताओं, गतिविधियों, फीस स्ट्रक्चर, स्टाफ सहित एक-एक दस्तावेज की जांच की। इस दौरान सदस्यों ने पाया कि स्कूल में पदस्थ शिक्षकों और बस चालकों का पुलिस वेरिफिकेशन ही नहीं कराया गया है। स्कूल आरटीई के दायरे में नहीं आता है। प्रबंधन ने कहा हमने 178 आर्थिक कमजोर बच्चों को फीस में छूट दी जिसकी राशि करीब 16 लाख है, लेकिन जब आयोग ने फाइल देखी तो उसमें विद्यार्थियों की तरफ से एक आवेदन बस लगा मिला। वह अमीर हैं या गरीब इसके कोई प्रमाण संस्था के पास नहीं मिले। मिशनरियों के यही हाल मंडला जिले में हैं। मंडला जिले के मवई थानांतर्गत घोरेघाट ग्राम पंचायत में संचालित सेंट जोसेफ स्कूल के फादर जीबी सेबेस्टियन फरार हैं। उनसे संबंधित सभी दस्तावेज भी स्कूल से गायब है। बाल अधिकार संरक्षण आयोग की टीम की दबिश के बाद कोई अन्य टीम आई थी, जो फादर से संबंधित फाइल लेकर चली गई। फादर के आवासीय कक्ष में ताला लगा हुआ है और मोबाइल बंद है।
राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्यों ने चार मार्च को मिशन स्कूल में दबिश दी। आठ मार्च को बाल कल्याण समिति के सदस्य योगेश पाराशर ने मवई थाने में सेंट जोसेफ स्कूल के फादर और छात्रावास के अधीक्षक कुंवर सिंह के विरुद्ध मवई थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई।फादर को गिरफ्तार करने की कवायद चल रही है। समूचे महाकौशल प्रांत में ईसाई मिशनरियों ने इसी प्रकार मकड़जाल फैला रखा है परंतु म. प्र.सरकार का शिकंजा कसता जा रहा है और मिशनरियों का दम निकलता जा रहा है।
मिशनरियों के सेवा की आड़ में हो रहे षड्यंत्रों और शोषण के विरुद्ध राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने न केवल आवाज बुलंद की है वरन् उन्मूलन भी किया है। अभी हाल ही में देशभर में विभिन्न सेवा कार्यों से जुड़े लोगों का जयपुर के केशव विद्यापीठ में महाकुंभ शुरू हुआ। इस अवसर पर संघ के सर संघचालक डॉ. मोहनराव भागवत ने कहा कि सेवा का पैमाना नहीं, लेकिन हिंदू साधू-संत देश में ईसाई मिशनरियों से ज्यादा सेवा कर रहे हैं। साथ ही देश के घुमंतु समाज को लेकर कहा कि जिन्होंने आजादी की लड़ाई लड़ी, झुके नहीं, शासकों ने अपराधी घोषित किया, आज उन्हें भूल गए, लेकिन स्वयंसेवकों ने उनकी सुध ली है।
ईसाई मिशनरीज और विदेशी अल्पसंख्यकों ने भारतीय संविधान में मिले अधिकारों का दुरुपयोग किया है और कर रहे हैं । अतः अब समय आ गया है कि इनके उन्मूलन के लिए चतुर्दिक घेराबंदी की जाए।
देश के विभिन्न अंचलों में डी-लिस्टिंग की मांग जनजातीय समाज उठा रहा है ।एक सशक्त जनमत इस मुद्दे पर आकार ले रहा है कि संविधान के अनुच्छेद 342 के अनुसार जो सरंक्षण औऱ आरक्षण हिन्दू जनजाति वर्ग को सुनिश्चित किया गया है उसका लाभ ईसाई और मुस्लिम विदेशी अल्पसंख्यक क्यों उठा रहे हैं ? एक अनुमान के अनुसार देश में जनजाति आरक्षण का लगभग 70 प्रतिशत लाभ मतांतरित हो चुके ईसाई या मुस्लिम लोग उठा रहे हैं।यह दोहरा लाभ उठा रहे हैं। इसलिए ईसाई मिशनरियों और विदेशी अल्पसंख्यकों के मकड़जाल को ध्वस्त करने के लिए डी-लिस्टिंग ब्रम्हास्त्र है और सर्जिकल स्ट्राइक भी। यद्यपि संविधान संशोधन आसान नहीं है परंतु हिन्दुओं की एकता एक विशाल जनमत तैयार कर संसद और विधान मंडलों को संविधान में संशोधन के लिए शक्ति प्रदान कर सकती है। डी-लिस्टिंग के साथ विदेशी मतावलंबियों को अल्पसंख्यक का दर्जा समाप्त करते ही ईसाई मिशनरीज और मुस्लिम मदरसों सहित अन्य विदेशी फंडिंग संस्थाओं की भी कमर टूट जाएगी। तब जाकर हिंदुत्व के आलोक में एक भारत – समरस भारत – समर्थ भारत-श्रेष्ठ भारत का अभ्युदय हो सकेगा।एतदर्थ मूल निवासी दिवस की जगह 9 अगस्त को नागपंचमी का पर्व धूमधाम से मनाया जाए क्योंकि यह सनातन है और हिंदुत्व
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