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याचिकायें लगवाकर रूकवाये चुनाव : कांग्रेस नहीं चाहती कि स्थानीय चुनाव हों

नगरीय निकाय एवं पंचायत चुनाव बिना ओबीसी आरक्षण करने केसंबंध में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर मध्यप्रदेश सरकार पारित आदेशमें संशोधन का आवेदन दायर करके पुनः अदालत से आग्रह करेगी कि मध्यप्रदेश में ओबीसी आरक्षण के साथ ही पंचायत एवं स्थानीय निकायचुनाव सम्पन्न हों।

• बिना ओबीसी आरक्षण के नगरीय निकाय एवं पंचायत चुनाव कराये जाने की वर्तमान परिस्थिति कांग्रेस के कारण निर्मित हुई है। मध्यप्रदेश में तो 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण के साथ पंचायत चुनाव प्रक्रिया चल ही रही थी एवं सरकार द्वारा इसके अंतर्गत वार्ड परिसीमन, वार्डों का आरक्षण, महापौर तथा अध्यक्ष का आरक्षण, मतदाता सूची तैयार करना आदि समस्त तैयारी कर ली गई थी। यहां तक की ओबीसी एवं अन्य उम्मीदवारों द्वारा नामांकन भी दाखिल कर दिया गया था, किन्तु कांग्रेस इसके विरूद्ध हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट गई, जिससे होने वाले चुनाव प्रभावित हुए एवंव्यवधान उत्पन्न हुआ।

• कांग्रेस ने अपने याचिकाकर्ताओं मनमोहन नागर, जया ठाकुर व सैयद जाफर के माध्यम से कोर्ट में प्रकरण दाखिल किया गया। इस तरह न्यायालयीन प्रक्रिया में उलझाकर ओबीसी हितों को कुचलने का काम कांग्रेस द्वारा किया गया है।

• मध्यप्रदेश सरकार ने आयोग बनाकर 600 पेज की जो रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत की, उसमें प्रदेश में ओबीसी वर्ग की आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक परिस्थितियों के साथ एरियावाईज संख्या के आंकड़े विस्तृत रूप से प्रस्तुत किए थे। जिसमें बताया गया था कि 48 प्रतिशत से ज्यादा ओबीसी मतदाताओं की औसत संख्या मध्यप्रदेश में है। कुल मतदाताओं में से अजा/अजजा के मतदाताओं के अतिरिक्त शेष मतदाताओं में अन्य पिछड़ावर्ग के मतदाताओं की संख्या 79 प्रतिशत है, यह भी आयोग की रिपोर्ट में पेश किया गया था।

• आयोग ने स्पष्ट अभिमत दिया था, कि त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों तथा समस्त नगरीय निकाय चुनावों के सभी स्तरों में अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं को कम से कम 35 प्रतिशत स्थान आरक्षित होना चाहिए।

• वह कमलनाथ सरकार ही थी, जिसने विधानसभा में 8 जुलाई 2019 को मध्यप्रदेश लोकसेवा आरक्षण संशोधन विधेयक में यह भ्रामक और असत्य आंकड़ा प्रस्तुत किया कि अन्य पिछड़े वर्ग की मध्यप्रदेश में कुल आबादी सिर्फ 27 प्रतिशत है। यह कांग्रेस का वह असली ओबीसी विरोधी चेहरा है जो मध्यप्रदेश की विधानसभा के दस्तावेजों में सदैव के लिए साक्ष्य बन गया है।

• भाजपा सरकार तथा संगठन हमेशा से नगरीय/ग्रामीण निकायो के चुनाव का पक्षधर रहा है। नगरीय निकायों के चुनाव प्रमुख रूप से नवम्बर 2019 को होना निर्धारित थे, परन्तु तत्समय कांग्रेस सरकार द्वारा चुनाव नहीं कराये।

• हमारी भाजपा सरकार ने तो करोना काल के समय भी चुनाव कराये जाने की आरक्षण/परिसीमन की कार्यवाही पूर्ण कर ली थी, कि निकायों का चुनाव कराया जाए।

• कांग्रेस चुनाव कराने से हमेशा डरती है क्योंकि उनको इस बात का संज्ञान था कि उनका जनाधार पूरी तरह से समाप्त हो चुका है, जिस प्रकार विधानसभा उपचुनाव में उनकी हार हुई थी उसी प्रकार निकाय चुनाव में भी वो बुरी तरह से हारेंगे।

• कमलनाथ सरकार द्वारा त्रुटिपूर्ण तरीके से किये गये परिसीमन करते हुए नवीन पंचायतें बनाई गई एवं कई पंचायतों को समाप्त करते हुए उनकी सीमाओं में बदलाव किया गया जिससे ओबीसी को दिया जाने वाला आरक्षण प्रभावित हुआ। हमारे मुख्यमंत्री द्वारा द्वारा 21 नवम्बर 2021 को मध्यप्रदेश पंचायत राज्य और ग्राम स्वराज संशोधन अध्यादेश के माध्यम से कांग्रेस सरकार द्वारा पूर्व में किये गये त्रुटिपूर्ण परिसीमन को निरस्त करते हुए यथास्थिति बनाई। यह कांग्रेस का वह असली ओबीसी विरोधी चेहरा है, जो मध्यप्रदेश की विधानसभा के दस्तावेजों में सदैव के लिए साक्ष्य बन गया है।

• श्री शिवराज सिंह के नेतृत्व वाली प्रदेश की भाजपा सरकार सदैव ओबीसी आरक्षण के पक्ष में रही है एवं यह भाजपा सरकार ही है जिसने विधानसभा में यह संकल्प पारित कराया कि बिना ओबीसी आरक्षण के पंचायत व नगरीय निकाय चुनाव नहीं होना चाहिए। भाजपा सरकार तथा संगठन हमेशा से नगरीय/ग्रामीण निकायो के चुनाव का पक्षधर रहा है।

• यह सर्वमान्य तथ्य है कि कमलनाथ ने अपनी सरकार के रहते पिछड़ा वर्ग के एक भी अभ्यर्थी को 27 प्रतिशत आरक्षण का लाभ नहीं मिलने दिया, जबकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जी ने मुख्यमंत्री बनने के एक महीने के भीतर ही यह संभव कर दिखाया था।

• भाजपा ने प्रदेश में वर्ष 2004 से लगातार 3 अन्य पिछडा वर्ग के मुख्यमंत्री प्रदेश को दिये। मंत्रिमण्डलों में भी व्ठब् के मंत्रियों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व/स्थान दिया गया है।

• केन्द्र और राज्य की भाजपा सरकार के कई निर्णयों से ओबीसी आरक्षण की प्रतिबद्धता का प्रमाण मिलता है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की सरकार ने ओबीसी की केन्द्रीय सूची का दर्जा बढ़ाकर इस सूची को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया और इसमें परिवर्तन करने के लिए संसद को शक्ति प्रदान की। संविधान संशोधन अधिनियम 2018 राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) को संवैधानिक दर्जा दिया।

• हमारे मुख्यमंत्री श्री चौहान जो स्वयं अन्य पिछडा वर्ग से आते हैं, उन्हांेने स्वयं तत्काल दिल्ली जाकर मान. उच्चतम न्यायालय के उपरोक्त निर्णय में संशोधन किये जाने का आवेदन लगाये जाने के लिये सॉल्सिटर जनरल से चर्चा की तथा निर्णय को संशोधन कराये जाने का प्रयास किया जा रहा है।

• आदेश में संशोधन की आवश्यकता इसलिए भी है क्योंकि वर्ष 2022 में नया परिसीमन त्रिस्तरीय पंचायतों का किया गया है तथा वर्ष 2019 से 2022 के मध्य 35 नये नगरीय निकाय गठित हुए हैं, इन नगरीय निकायों में ग्रामीण क्षेत्र से 128 ग्राम पंचायतें तथा उनके 297 ग्राम नगरीय निकायों में चले गये हैं जबकि उच्चतम न्यायालय के आदेश में वर्ष 2019 में त्रिस्तरीय पंचायतों के परिसीमन के आधार पर चुनाव कराये जाने के निर्देश दिये गये हैं। जिससे कई विसंगतियां उत्पन्न होगी। चुनाव नवीन परिसीमन के अनुसार ही कराया जाना आवश्यक है।

• भाजपा शीघ्र चुनाव कराना चाहती है तथा उसके लिए पहले भी कई बार प्रयास किये गये हैं। भाजपा यह भी चाहती है कि चुनाव पिछडे वर्ग के आरक्षण के साथ हो। शीघ्र चुनाव कराये जाने एवं अन्य पिछडा वर्ग आरक्षण के साथ कराये जाने का पुरजोर प्रयास भाजपा सरकार द्वारा किया जा रहा है।

पत्रकार वार्ता को विधायक श्री अशोक रोहाणी ने संबोधित किया।
पत्रकार वार्ता में नगर अध्यक्ष श्री जीएस ठाकुर, प्रदेश कोषाध्यक्ष श्री अखिलेश जैन, पूर्व महापौर डॉ स्वाति गोड़बोले उपस्थित थे।

 

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